Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिक
भोगभूभ्यायुरुत्सेधवृत्तयोर्भोगभूमिभिः । समप्रणिधयः कर्मभूमिवत्कर्मभूमिभिः ॥ ७ ॥
करनेवाले म्लेच्छ तो
तथा कर्मभूमियों की
कर रहे म्लेच्छों की
भोगभूमियोंकी समरेखापर निकटवर्ती बन रहे अन्तद्वीपों में निवास भोगभूमिवाले जीवों के समान आयुष्य, ऊंचाई और प्रवृत्तिको धार रहे हैं निकटवर्तिनी समरेखापर लवणसमुद्र या कालोदधिमें बने हुये अन्तद्वीपोंमें निवास आयु या शरीरकी ऊंचाई तथा भोजनादि की प्रवृत्तियां कर्मभूमिवाले जीवों की आयु, ऊंचाई, और प्रवृत्तियोंके समान है। किन्तु कर्मभूमिके समान उन म्लेच्छों में देशव्रत या महाव्रत नहीं पाये जाते हैं । भोगभूमिभिः समानप्रणिधयोंतद्वीपजा म्लेच्छा भोगभूम्यायुरुत्सेधवृत्तयः प्रतिपत्तव्याः, कर्मभूमिभिः सममणिधयः कर्मभूम्यायुरुत्सेधवृत्तयस्तथा निमित्तसद्भावात् ।
भोगभूमियों की समाननिकटतावाले अन्तद्वीपोंमें उपजे हुये म्लेच्छ तो उन उन भोगभूमियोंके जीवोंकी आयु, ऊंचाई, प्रवृत्तिके समान आयुष्य उच्चता, प्रवृत्तियों को धार रहे समझ लेने चाहिये । और कर्मभूमियोंकी समप्रणिधिवाले म्लेच्छ तो उस कर्मभूमिमें नियत हो रही आयु, ऊंचाई, प्रवृत्तियोंके अनुसार आयु, शरीरोत्सेध, और प्रवृत्तियों को धार रहे हैं। क्योंकि तिस प्रकारके निमित्त कारणों का सद्भाव है । कारणके बिना किसी भी कार्यकी सिद्धि नहीं हो पाती है। जैसे पुण्य, पाप, उन भोगभूमि या कर्मभूमिमें जन्म ले चुके मनुष्यों के हैं, उस ही प्रकार के कुछ न्यूनाधिक पुण्य, पाप, उन उन भूमियोंके निकटवर्त्ती अन्तरद्वीपों के निवासी म्लेच्छ मनुष्योंमें भी पाये जाते हैं। जैसा कारण होगा वैसा कार्य बन जायगा, यह निर्णीत सिद्धान्त है।
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अथ के कर्मभूमिजा म्लेच्छा इत्याह ।
अब इसके अनन्तर कोई प्रश्न पूछता है कि दोनों प्रकारके आर्योंको में समझ चुका हूँ, दे, प्रकारके म्लेच्छों में अन्तर द्वीपके म्लेच्छोंकी प्रतिपत्ति भी की जा चुकी है। अब महाराज, बतलाओ कि दूसरे प्रकारके कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुये म्लेच्छ भला कौन है ? इस प्रकारकी जिज्ञासा होनेपर ग्रन्थकार अप्रिम वार्त्तिक द्वारा उत्तर कहते हैं ।
कर्मभूमिभवा म्लेच्छाः प्रसिद्धा यवनादयः ।
स्युः परे च तदाचारपालनाद्बहुधा जनाः ॥ ८ ॥
और वे दूसरे कर्मभूमियों में उत्पन्न हुये म्लेच्छ तो यवन, शबर, पुलिन्द, किरात, वखर, आदिक सिद्ध ही हैं, जो कि बहुत प्रकार के चाण्डाल आदि मनुष्य उन म्लेच्छों के आचारको पालनेसे म्लेच्छ ही समझे जाते हैं । अर्थात् — जिन जातियोंमें मद्य, मांस, आदिक कुकर्मोंसे घृणा नहीं है, धर्म,