Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यलोकवार्तिके
आकाश और भूमि सबको अन्य साधनोंके बिना बना रहा है । पंचभूतरूप उपादान अवयवों करके संगत करा देता है । यहां कोई दूसरे नैयायिक विद्वान् यों मान बैठे हैं कि ईश्वरके कोई शरीर नही हैं, जिससे कि हमारे हेतुका व्यभिचार दोष बलात्कारसे प्रेरा जाता है । वे इस अपने आगमको प्रमाण कर रहे हैं । श्वेताश्वतरोपनिषद्के तृतीय अध्यायमें १९ वां श्लोक है कि वह ईश्वर हाथों से रहित हो रहा ही चाहे जिस छोटे या बडे पदार्थको पकड सकता है। पांवोंसे रहित होरहा बडे वेगसे दौड सकता है । आंखोंके विना सबको देख लेता है, कानोंके विना संपूर्ण शद्बोंको सुन लेता है, वह सबको जानता है, उस ईश्वरका परिज्ञान करनेवाला कोई नहीं है । योगीपुरुष उसको सबका अग्रवर्ती प्रधानपुरुष कहते हैं । ग्रंथकार कहते हैं कि उक्त आगमको प्रमाण माननेवाले उन नैयायिकोंके यहां माना गया शरीररहित ईश्वर भी उन द्वीप, समुद्र, आदिकी रचनामें निमित्तकारण सिद्ध नहीं होपाता है। क्योंकि ईश्वर देहरहित है। जो जो देहरहित है वह वह द्वीप, आदिका निमित्तकारण नहीं, जैसे कि नैयायिकोंका स्वयंसंमत होरहा मुक्तात्मा निर्देह होनेसे द्वीप आदिका निमित्तकारक नहीं है।
__ननु च मुक्तात्मनामज्ञत्वान्न जगदुत्पत्तौ निमित्तत्वं ईश्वरस्य तु निर्देस्यापि नित्यनानत्वात्तन्निमित्तकारणत्वमेवेति चेत्
पुनः नैयायिकका अवधारण है कि भो महाराज, मुक्त आत्मा तो ज्ञानरहित अज्ञ हैं । क्योंकि मोक्ष अवस्थामें बुद्धि, सुख आदि गुणोंका विनाश होजाता है । अतः मुक्त आत्मा विचारा जगत् की उत्पत्तिका निमित्तकारण नहीं होसकता है। हां, ईश्वर तो देहरहित होता हुआ भी नित्य ज्ञानका अधिकरण होनेसे इस जगत्का निमित्तकारण हो ही जाता है । कर्ताके निकट ज्ञान होनेकी आवश्यकता है। पोंगा शरीर अकिंचित्कर है । इस कारण यो अवधारण प्रवर्तने पर श्री विद्यानन्द स्वामीकी अग्रिमवार्तिक को सुनो
नित्यज्ञानत्वतो हेतुरीश्वरो जगतामिति ।
न युक्तमन्वयासत्त्वाद्यतिरेकाप्रसिद्धितः॥१॥
ईश्वर ( पक्ष ) तीनों जगत्के निर्माणका हेतु है ( साध्य ) क्योंकि उसका ज्ञान नित्य है. (हेतु ) नित्यज्ञानवाला ईश्वर जगत्को बना लेता है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार नैयायिकोंका कथन युक्तिपूर्ण नहीं । क्योंकि इस अनुमानमें अन्वयदृष्टांतका सद्भाव नहीं है । अन्वयदृष्टान्तके विना साध्यके साथ हेतुकी व्याप्ति भला कहां निर्णीत की जावेगी ? आप नैयायिकोंके सिद्धान्त अनुसार एक ही व्यक्ति नित्य ज्ञानवान है, और वही जगत्का निर्माता है । उसीको तुमने पक्ष बना रखा है। ऐसी दशामें अन्वयदृष्टान्तका सद्भाव नहीं सम्भवनेसे व्यतिरेककी भी असिद्धि हो जाती है । कारण कि अन्वयकी भित्तिपर व्यतिरेककी सामर्थ्य बहुत बढ़ जाती है । अर्थात्-यदि दृष्टान्तके विना ही चाहे जिस हेतुसे अन्ट सन्ट किसी भी साध्यकी सिद्धि कर लोगे, तब तो तुम्हारा टटूआ लाख रुपयोंका