Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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. तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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यथैव हि सन्निवेशविशिष्टत्वादिति हेतु सिद्धः शक्यो वक्तुमिष्टहेतुनामप्यसिद्धत्वप्रसंगात्। किं तर्हि ? परीक्षकैरनैकांतिको वाच्यस्तथा कार्यत्वादचेतनोपादानत्वादर्थक्रियाकारित्वात् स्थित्वामवृत्तेः, इत्येवमादिरपीश्वरदेहेनानैकांतिक एव सर्वथा विशेषाभावात् । अपि च
कारण कि जिस हो प्रकार " सन्निवेशविशिष्टत्वात् ” यह हेतु असिद्ध हेत्वाभास नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यों अन्ट, सन्ट, दोष लगादेनेपर तो धूम आदि इष्ट हेतुओंको भी असिद्ध हेत्वाभास होजानेका प्रसंग आजावेगा, जो कि जैनोंको अभीष्ट नहीं है। तो फिर इस बैशेषिकोंके हेतुमें क्या दोष लगाया जाय ? इसका उत्तर यही है कि परीक्षकों करके यह हेतु अनैकांतिक हेल्लाभास कह कर ठहरा दिया जाय, तिस ही प्रकार कार्यत्व, अचेतनोपादानत्व, अर्थक्रियाकारित्व, स्थित्वाप्रवृत्ति, इत्यादि इस प्रकारके अन्यहेतु भी ईश्वरके शरीर करके अनैकान्तिक हेत्वाभास ही हैं । क्योंकि सन्निवेशविशिष्टत्वसे कार्यत्वादि हेतुओंमें कोई अन्तर नहीं है । अर्थात्वैशोषिकोंने अपने कर्तृत्ववादको पुष्ट करनेके लिये विशेष स्थलोंपर यों कहा है कि "क्षित्यकुरादिकं कर्तृजन्थं कार्यत्वात् घटवत् ” जो जो कार्य होते हैं, वे बुद्धिमान्से जन्य हैं, जैसे कि घडा है । इस ही प्रकार जिन कार्योंके अचेतन उपादान कारण हैं। उनकी ठीक ठीक व्यवस्था जमाने के लिये चेतन कर्ताकी आवश्यकता है । जो पदार्थ अर्थक्रियाओंको कर रहे हैं, वे चेतनसे अधिष्ठित होकर ही नियत कार्योको कर सकते हैं । जो कारण ठहर ठहर कर कभी कुछ और कभी कुछ कार्योको करते हैं, वे चेतन द्वारा प्रेरित हो रहे हैं । जैसे कि कभी हथोडा सोनेको कूटता है, कभी कैंची पत्तरको काटती है, कभी पंत्री सोनेको खींच रही है, इन ठहर ठहर कर कार्योंके प्रवर्तनेमें सुनारका अस्तित्व आवश्यक है। इसी प्रकार कपडा बुनते समय ठहर ठहर कर अनेक कारणोंकी प्रवृत्ति करानेमें कोली बुद्धिमान् कर्ता है। तथा रूपादिमान् या अचेतन पदार्थ भी चेतन कर्ता द्वारा कार्योका सम्पादन कर सकते हैं । इत्यादि उनके सभी हेतु व्यभिचार दोषयुक्त हैं । और एक बात यह भी है, उसको सुनो
स्थावरादिभिरप्यस्य व्यभिचारोनुवर्ण्यते ।
कैश्चित्पक्षीकृतैस्तेषामधीमद्धेतुतास्थितैः ॥ ३९ ॥
किन्हीं विद्वानों करके इस सन्निवेशविशिष्टत्व हेतुका खाने, कूपजल, वायु, वन्हि, वनस्पति, इन स्थावर और सूर्य, समुद्र, आदि करके व्यभिचार प्राप्त हो जानेका पीछे वर्णन किया गया है । जो कि वे स्थावर आदिक पदार्थ; नैयायिकोंके यहां पक्षकोटिमें अन्तःप्रविष्ट किये जा चुके हैं । किन्तु किसी सर्वज्ञ, अशरीर, बुद्धिमान्को, उनका निमित्तकारणपना व्यवस्थित नहीं हो सका है। अर्थात्-उपवनकी वनस्पतियोंको कोई बालकोंसी बुद्धिको धारनेवाला पंडित भले ही माली करके