Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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चिन्तामणिः
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आदि अमूर्तद्रव्यों का परिणाम स्वरूप हो रही वह जाति कथंचित् अमूर्त भी है । इस प्रकार जातिके कथंचित् नित्यत्व, अनित्यत्व, या कथंचित् सर्वगतत्व, असर्वगतत्व अथवा कथंचित् मूर्तत्व, अमूर्तत्वका विवेचन कर दिया है 1 वैशेषिकों का ब्राह्मणत्व आदि जातिको सर्वथा नित्यस्वभाव, सर्वगतस्वभाव और अमूर्तस्वभाव मानना युक्तिरहित है। क्योंकि ऐसा माननेमें अनेक प्रमाणोंकरके बाधायें उपस्थित की जा रही हैं। इस कारण हमने उक्त ढाई वार्तिकोंमें बहुत अच्छा जातिका विचार कर समीचीन सिद्धान्त कह दिया है । तिस कारण इस प्रकार होनेपर जो हुआ सो सुनो ।
सार्धद्विद्वीप विष्कंभप्रभृति प्रतिपादितं । समनुष्यं चतुष्टय्या सूत्राणामिति गम्यते ॥
१३ ॥
तीसरे पुष्करद्वीप के आधे भागसहित जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप इन दो द्वीपों यानी ढाई द्वीप विष्कम्भ आदिका मनुष्योंसहित श्री उमास्वामी महाराजने सूत्रोंकी चतुष्टयीकर के प्रतिपादन कर दिया है, यह समझ लिया जाता है । अर्थात् — द्विर्धातकीखण्डे, पुष्करार्धे च, प्रामानुषोत्तरान्मनुष्याः, आर्या म्लेच्छाश्च, इन चार सूत्रोंकरके मूलग्रन्थकारने ढाई द्वीप और मनुष्यों का प्रबोध करा दिया है, यों माना जाय ।
काः पुनः कर्मभूमयः काच भोगभूमय इत्याह ।
कृपानिधान गुरुवर्य, अब यह बताओ कि फिर कर्मभूमियां कौनसी हैं ? और भोगभूमियों के स्थान कौन हैं ? यो प्रश्न होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिमसूत्रको कहते हैं ।
भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः ।
पांच भस्त, पांच ऐरावत और पांच विदेह ये पन्द्रह कर्मभूमियां हैं। हां, विदेहों के मध्य में वर्त रही पांच देवकुरुओं और पांच उत्तरकुरुओं को छोड देना चाहिये। क्योंकि वे उत्तम भोगभूमिया मानी गयी हैं ।
कर्मभूमय इति विशेषणानुपपत्तिः सर्वत्र कर्मणो व्यापारादिति चेन्नं वा, प्रकृष्टगुणानुभवनकर्मोपार्जितनिर्जराधिष्टानोपपत्तेः षट्कर्मदर्शनाच्च । अन्यत्रशब्दः परिवर्जनार्थः । शेषा भोगभूमय इति सामर्थ्याद्गम्यत इत्यावेदयति ।
कोई शंका करता है कि लोकमें सम्पूर्ण स्थलोंपर जब आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध और उनके फलों का अनुभवरूप व्यापार व्याप रहा है, सिद्धलो में भी एकेंद्रिय जीव कर्मो का उपार्जन कर रहे हैं, भोगभूमियोंमें आदिके चार गुणस्थानों अनुसार कर्म उपार्जन हो रहा है, देव या