Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
लेना चाहिये । पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, इन पांचों स्थावर जीवोंके एक त्वचा इन्द्रिय ही है।
कुत इत्याह । किसीका प्रश्न है कि वनस्पति पर्यन्त जीवोंके एक स्पर्शन इन्द्रिय है। यह सिद्धान्त किस प्रमाणसे निर्णीत कर लिया जाय ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य अग्रिमवार्त्तिक द्वारा युक्तिको कहते हैं।
वनस्पत्यंतजीवानामेकं स्पर्शनमिंद्रियं ।
तजज्ञाननिमित्तायाः प्रवृत्तेरुपलंभनात् ॥१॥
वनस्पतिपर्यन्त जीवोंके ( पक्ष ) एक स्पर्शन इन्द्रिय है ( साध्य ) उस स्पर्शन इन्द्रियसे उत्पन्न हुये ज्ञानको निमित्त पाकर हो रही प्रवृत्तिका उपलम्भ होनेसे ( हेतु )। भावार्थ-वृक्षोंमें स्पर्शन इन्द्रियजन्य ज्ञानसे हुयी प्रवृत्तियां देखी जाती हैं । केला वृक्ष, केली वृक्षके रजका संपर्क पाकर फलता है। यद्यपि सम्पूर्ण वृक्ष नपुंसक लिंग हैं । फिर भी कवि जोंके अलंकार या कोषकारकी लिंगव्यवस्था अनुसार कितने ही मनुष्योंने उनमें स्त्रीपन या पुरुषपनकी झूठी कल्पना गढ ली है। वनस्पतिकायकी दस लाख जातियां हैं, अट्ठाईस लाख करोड कुल हैं, यह जाति कुलव्यवस्था उस कल्पनाकी भित्ति है । योग्य प्रकरण मिलनेपर केला, अमरूद, आम, आदिकी उत्पत्ति हो जाती है। यदि इसको कारक पक्ष माना जाय तो ज्ञापकपक्षके भी उदाहरण मिलते हैं। कई वृक्ष आहार करने योग्य जड या चेतन पदार्थोको पकड लेते हैं । जल या गीली मिट्ठीकी ओर जरों ( अपनी जडों) को फैलाते हैं । योग्य खातको ग्रहण कर अपने अधीन कर लेते हैं । मट्टीकी खान, कङ्कड, पत्थरके कोयलेकी खान, पर्वत इन पृथिवी कायके जीवोंमें भी स्पर्शन इन्द्रियजन्य ज्ञान द्वारा प्रवृत्ति होती हुई देखी जाती है । जल विंदु दूसरी जलविन्दुकी ओर झुक जाती है। अग्निज्वाला भी सजातीय दूसरी अग्नि ज्वालामें मिलनेको उत्सुक रहती हैं । निकटवर्ती वृक्ष. या लकडीको सहारा पाने के लिये वेले उनकी ओर झुकपडती हैं । इत्यादि युक्तियोंसे स्थावर जीवोंमें एक स्पर्शन इन्द्रिय सिद्ध हो जाती है ।
यथास्मदादीनां स्पर्शनजज्ञाननिमित्ताहिताहितस्य संग्रहणपरित्यागलक्षणा प्रवृत्तिरुपलभ्यते तथा वनस्पतीनामपि सोपलभ्यमाना स्पर्शनजज्ञानपूर्वकत्वं च साधयति तजं च ज्ञानं स्पर्शनमिंद्रियमिति निर्वाचं । तद्वत्पृथिव्यादिनीवानाभेकमिंद्रियं संभाव्यते बाधकाभावात् ।
जिस प्रकार हम लोगोंके स्पर्शन इन्द्रियजन्य ज्ञानको निमित्त पाकर होती हुई हितकर पदार्थ का संग्रह करना और अहितपदार्थका परित्याग करना स्वरूप प्रवृत्ति देखी जा रही है, तिसी प्रकार अन्वय दृष्टान्त अनुसार वनस्पति जीवोंके भी वह प्रवृत्ति देखी जा रही सन्ती स्पर्शन इन्द्रियजन्य ज्ञान