Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
क्षेत्रावगाहनापेक्षां कृत्वा सूक्ष्मं परं परं । तैजसात्प्रागसंख्येयगुणं ज्ञेयं प्रदेशतः ॥ १ ॥ स्थूलमाहारकं विद्धि क्षेत्रमेकं विधीयते । तथानंतगुणे ज्ञेये परे तैजसकार्मणे ॥ २ ॥
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यद्यपि प्रदेशोंकी अपेक्षा तैजससे पहिले के औदारिक, वैकियिक और आहारक शरीर उत्तरोत्तर असंख्यात गुणें हैं तो भी क्षेत्रके अवगाहकी अपेक्षा करके परले परले शरीर सूक्ष्म समझ लेने चाहिये । औदारिक शरीर स्थूल है, इससे वैक्रियिक सूक्ष्म है, और वैक्रियिक तो स्थूल है। इससे आहारक सूक्ष्म
। तथा हस्तप्रमाण एक क्षेत्रको अनन्तानन्त परमाणुओं द्वारा बनकर अपना आधार कर रहे आहारक शरीरको स्थूल समझो । इसकी अपेक्षा परले तैजस और कार्मण शरीर अनन्तगुणे समझ चाहिये । अर्थात् — जैसे कि पांच सेर रुईको कितना भी दबा दिया फिर भी दश सेर लोहेका गोला बहुत प्रदेश होनेपर भी अल्प परिमाणवाला रहता है । लोहेसे सोना, या पारा छोटे परिमाणवाला है । अतः परमाणुओं के अत्यधिक होनेपर भी अवगाहनकी अपेक्षा छोटे क्षेत्रोंमें वे समाजाते हैं । जस्तेको अग्निमें जलाकर फूला हुआ बहुत सफेदा बना लिया जाता 1
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तर्हि सप्रतिघाते ते प्राप्ते इत्याह ।
किसीका प्रश्न है कि तैजस और कार्मण शरीरमें जब परमाणुऐं ठसाठस खचित हो रही हैं, तब तो वे तैजस और कार्मण शरीर प्रतिघात सहित प्राप्त हुये । देखिये, मूर्त्तिमान् सघन बाण यदि वृक्ष या पाषाणसे टकरा जाता है तो वेग अनुसार थोडा घुसकर पुनः रुक जाता है । इसी प्रकार तैजस और कार्मण भी मूर्त्तिमान् द्रव्यसे टक्कर खाकर रुक जायेंगे ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको उतारते हैं । इस सूत्र का अर्थ समझियेगा ।
अप्रतीघाते ॥ ४० ॥
किसी मोटेसे मोटे भी पदार्थका अमूर्त पदार्थ के साथ व्याघात होता नहीं है । किन्तु सूक्ष्म परिणाम होनेसे मूर्त भी तैजस और कार्मण शरीरका किसी मूर्त्तिमान् पदार्थ के साथ भी व्याघात नहीं हो पाता है । पर्वत, नदी, भूमियां, वज्रपटल, सूर्य, चन्द्रमा, आदिको व्याघात नहीं पहुंचा कर और स्वयं छिन्न, भिन्न, नहीं होते हुये तैजस, कार्मण, शरीर सर्वत्र चले जा सकते हैं। मरकर केवल तैजस और कार्मण शरीरको धार रहे संसारी जीव की तीन लोक में कहीं से कहीं भी गति रुक नहीं सकती है I अतः तैजस और कार्मणशरीर प्रतीधातरहित हैं ।
प्रतीतो मूख्यायातः स न विद्यते यस्तेऽवतीयाते तैजसकार्मणे । कुत इत्याह ।