Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिक
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हेतुके नहीं ठहरते हुये साध्य के नहीं ठहरनेपर व्यभिचार दोष नहीं लग पाता है। देखिये, उन क्रोधादिकोंको परतंत्रता के निमित्त कारण होनेका अभाव है, पुगलकी कार्मणवर्गणाओंसे बनाये गये द्रव्य क्रोध, द्रव्यमान, आदिक ही जीव की परतंत्रता के निमित्त हैं । उन द्रव्यकोष आदि के निमित्त से हुये जीव के भाव क्रोध, अभिमान आदिक जीवपर्याय परतंत्रता के निमित्त नहीं हैं। वे भावक्रोध आदिक तो स्वयं परतंत्रता स्वरूप हैं । क्योंकि पुद्गल द्रव्यके बने हुये क्रोध आदिक कर्मोंका उदय होते सन्ते ही भाव क्रोध आदि जीव परिणामों की उत्पत्ति हो रही जीवकी परतंत्रता है। उन पुद्गल निर्मित द्रव्य क्रोध आदि द्वारा की गयी फिर अन्य कोई भी पदार्थ परतंत्रता नहीं है । अर्थात् क्षमास्वरूप जीवका क्रोध रूप हो जाना ही पराधीनता है । सबको जान लेना इस स्वभावको धारनेवाले जीव का पौगलिक ज्ञानावरण 'कर्मके उदय होने पर अज्ञानभाव हो जाना ही तो जीवकी पराधीनता है। इस कारण हेतुके नहीं घटित होनेपर और साध्यके भी नहीं ठहरनेपर भावक्रोध द्वारा व्यभिचार नहीं हो सकता है | हमारा प्रयुक्त किया गया परतंत्रताका निमित्तपना हेतु व्यभिचार दोषरहित है । अतः सर्वदा अगमक नहीं है । किन्तु पुद्गल पर्यायपन साध्यका सर्वदा ज्ञापक है ।
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अत्रापरः स्वप्नांतिकं शरीरं परिकल्पयति तमपसारयन्नाह ।
यहां कोई दूसरा बौद्ध उक्त पांच शरीरोंमें अतिरिक्त स्वप्नमें होनेवाले स्वप्नान्तिक शरीरकी परिकल्पना कर रहा है उसके मलका निराकरण करते हुये श्री विद्यामन्द आचार्य अग्रिम वार्तिकको कहते हैं ।
स्वप्नोपभोगसिध्यर्थं कायं स्वप्नान्तिकं तु ये ।
प्राहुस्तेषां निवार्यते भोग्याः स्वप्नांतिकाः कथम् ॥ ५॥ भोग्यवासनया भोग्याभासं चेत्स्वप्नवेदिनां । शरीरवासनामात्राच्छरीराभासनं न किम् ॥ ६ ॥
स्वप्न दशामें अनेक प्रकारके सुख दुःख भोगने पडते हैं । कभी कुयेमें गिर पडता है, कभी - भोजन करनेका स्वप्न आता है, कभी नावमें बैठकर जाता है, इत्यादिक स्वप्नके उपभोगों की सिद्धिकी प्राप्ति करनेके लिये जो बौद्धपण्डित एक स्वप्नास्तिक शरीरंको अच्छा कह रहे हैं, उनके यहां तो स्वप्न 'दशामें होनेवाले स्वप्नान्तिक भोग्यपदार्थ भला कैसे निवारे जा सकते हैं ? अर्थात् स्वप्नान्तिक शरी के समान स्वप्नान्तिक घोडा, नाव, धन, कूप, नदी, भोजन, अलंकार, आदिक भोग्य पदार्थ भी मानने चाहिये। जैसे कि यह स्थूल शरीर खाटपर सो जाता है, कहीं बाहर नाव, घोडापर, चढ नहीं सकता है, खाता, पीता, चलता, फिरता नहीं है, हां, दूसरा स्वप्नान्तिक शरीर उक्त क्रियाओंको सुलभतां कर लेता है, उसी प्रकार निकटवर्ती भोग्य पदार्थं तो यथास्थान रखे रहते हैं । स्वप्न अवस्था में