Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
.
गंगासिंध्वाद्यग्रहणं प्रकरणादिति चेन्न, अनंतरग्रहणप्रसंगात् । गंगादिग्रहणमिति चेन्न, पूर्वगाणां ग्रहणप्रसंगात् । नदीग्रहणात्सिद्धिरिति चेन्न, तस्योत्तरत्र द्विगुणभिसंबंधनार्थत्वात् ।
यहां कोई शंका करता है कि सूत्रकारको गंगा, सिंधु आदिका ग्रहण नहीं . करना चाहिये । क्योंकि प्रकरण चला आ रहा होनेसे नदियोंका ग्रहण स्वतः ही हो जाता है। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि " अनन्तरस्य विधिर्वा भवति प्रतिषेधो वा" । अव्यवहित पूर्ववर्ती पदार्थका ही विधि अथवा निषेध उत्तरवर्ती वाक्य द्वारा किया जाता है। इस परिभाषाके अनुसार अव्यवहित पूर्वमें कहीं गयी पश्चिमगामिनी सिन्धु, रोहितास्या आदि सात नदियोंके ही ग्रहण होनेका प्रसंग आ जावेगा । गंगा रोहित् आदि सात नदियां छूटी जाती हैं । अतः गंगा, सिन्धु, आदि पद व्यर्थरूपसे शंकित किया जा रहा ज्ञापन करता है कि पूर्व सूत्र और प्रपूर्व सूत्रमें कहीं जा चुकी सम्पूर्ण चौदह नदियों का ग्रहण कर लेना चाहिये । पुनः आक्षेपकार यदि यों कहे कि तब तो गंगा आदि ग्रहण करना ही पर्याप्त है, सिन्धु पद व्यर्थ पडता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह भी नहीं कहना, क्योंकि गंगा आदि इतना ही कहनेपर पूर्वगामिनी सात नदियोंके ही ग्रहण हो जानेका प्रसंग होगा, संपूर्ण नदियां नहीं पकडी जा सकेगी। फिर भी आक्षेपकार यों कहें कि नदियां तो प्रकरण प्राप्त हैं ही, नदी ग्रहणके विना भी नदियोंकी प्रतीति हो सकती है । तथापि सूत्रकारने नदी शब्दका ग्रहण किया है। अतः सम्पूर्ण नदियोंकी प्रतिपत्ति हो जायगी । गंगा सिन्धु आदि ग्रहण करना पुनरपि व्यर्थ है । आचार्य कहते हैं कि यह तो आक्षेप नहीं करना । क्योंकि उस गंगा सिन्धु आदि पदके ग्रहण करनेका प्रयोजन तो उत्तरवर्ती परली ओरकी नदियोंमें द्विगुना द्विगुना सम्बन्ध कर देना है । शब्दों की अधिकतासे शिष्योंको अधिक अर्थकी ज्ञप्ति हो जाती है । भावार्थ-गंगा सिन्धुके परिवारसे रोहित् , रोहितास्या, प्रत्येकका परिवार दूना यानी अट्ठाईस अट्ठाईस हजार नदियां हैं और हरित् , हरिकान्ता, नदियोंका परिवार इससे भी दूना यानी छप्पन छप्पन हजार है। सीता सीतोदामें से प्रत्येकका परिवार एक लक्ष बारह हजार नदियां बैठता है, किन्तु त्रिलोकसार ग्रन्थ अनुसार चौरासी हजार माना गया है और नारी, नरकान्ता, नदियों में प्रत्येकका परिवार छप्पन हजार है। तथा सुवर्ण कूला रूप्यकूला नदियोंमें प्रत्येकका परिवार अठाईस हजार है और रक्ता रक्तोदा नदियोंका परिवार चौदह, चौदह, हजार हैं । गंगा आदिक नदियोंकी परिवार नदियां परली ओर दूनी दूनी हैं । इतना ही कह देनेसे सिन्धुका परिवार भी गंगा नदीसे द्विगुना बन बैठेगा । अतः सिन्धुपद भी सार्थक है।
सर्वथैवासंभाव्या गंगादयो नद्यः मूत्रिता इति कस्यचिदारेका निराकर्तुं प्रक्रमते ।।
कोई शंका करता है कि सूत्रकार महाराजने जिन गंगा, सिन्धु, आदि नदियोंका सूत्रद्वारा निरूपण किया है वे नदियां सभी प्रकारों से असम्भव हैं । हजारों कोस चौडी उक्त नदियां वर्तमान में दृष्टिगोचर नहीं हो रहीं हैं । उनका प्रभव करनेवाले हृद, कुण्ड, तोरणद्वार तथा उनके दोनों ओर