Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
राजवार्तिक ग्रन्थमें अकलंक देव महाराजने अगले अगले हृदोंके अवगाहको भी कण्ठोक्त द्विगुना द्विगुना लिखा है। यहां भी द्विगुनी गहराईका निषेध नहीं है, जब कि जम्बूद्वीपके उत्तरवर्ती स्थानोंकी रचना दक्षिण दिशावर्ती स्थानों के तुल्य है। इसको समझानेके लिये "उत्तरा दक्षिणतुल्याः" इस वक्ष्यमाण सूत्रका सम्बन्ध हो रहा है। इससे प्रतीत हो जाता है कि सूत्रमें फिर " द्विगुणद्विगुणाः" इस बहुवचनकी सामर्थ्यसे उन, दूनी दूनी लम्बाई, चौडाई, गहराईयोंका सम्बन्ध हो जाता है । अन्यथा “ तद्विगुणौ द्विगुणौ ” इस प्रकार अर्थकृत लाघव करते हुये सूत्रकारको “ द्विगुणद्विगुणौ " इतना ही कह देनेका प्रसंग प्राप्त होगा । अर्थात्-पद्म हृदसे दूना महापद्म हृद है और महापद्मसे दूना तिगिंछ हृद है तथा पुण्डरीक हृदसे महापुण्डरीक ह्रद दूना लम्बा चौडा गहरा है और महापुण्डरीक सरोवरसे केसरी ह्रद द्विगुना है, यह केवल दो स्थानोंपर ही द्विगुनापना दिखलाया गया है। यों ही दो स्थानोंपर कमलोंका भी दूनापन निर्णीत हो रहा है। ऐसी दशामें सूत्रकारको संक्षेपसे " तद्विगुणद्विगुणौ कहना चाहिये था । फिर जो सूत्रकारने " तद्विगुणद्विगुणाः " यों बहुवचनान्तपद कहा है, इससे जाना जाता है कि दक्षिण, उत्तर, आदि अन्तके दो ह्रद या कमलोंसे मध्यवर्ती ह्रद और कमलोंकी लम्बाई चौडाई और निम्नतायें तीनों द्विगुनी द्विगुनी हैं। हृद या कमलोंकी संख्या दूनी दूनी नहीं है। एक एक ही बराबर है । तिस कारण इस प्रकार होनेपर जो हुआ उसे सुनो ।
तन्मध्ये योजनं प्रोक्तं पुष्करं द्विगुणास्ततः । हृदाश्च पुष्कराणीति सूत्रद्वितयतोंजसा ॥१॥
उस हृदके मध्यमें एक योजनका पुष्कर और उससे द्विगुने, द्विगुने, आकारवाले हृद और पुष्कर हैं, इस अर्थको उक्त दोनों सूत्रोंते श्री उमास्वामी महाराजने स्पष्ट रूपसे अच्छा कह दिया है ।
तनिवासिन्यो देव्यः काः किं स्थितयः परिवाराश्च श्रूयन्त इत्याह ।
अब महाराजजी, यह बताओ कि उन पुष्करोंमें बने हुये महलोंमें निवास करनेवाली देवियां कौन हैं ? सर्वज्ञ आम्नायसे चले आ रहे द्वादशांगके अंगभूत शास्त्रों में उन देवियोंकी कितनी स्थिति कही है ? तथा ऋषि सम्प्रदाय द्वारा उनका परिवार कितना शास्त्रोंमें सुना जा रहा है ? यों विनीत शिष्यकी शुश्रूषाको ज्ञात कर चुकनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्र कहते हैं ।
तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिकपरिषत्काः॥२०॥ ___उन कमलोंमें यथाक्रमसे निवास करनेका शील रखनेवाली १ श्री २ ही ३ धृति १ कीर्ति ५ बुद्धि ६ लक्ष्मी ये छह व्यन्तर देव जातिकी देवियां वास कर रहीं हैं। उन सम्पूर्ण देवियोंके भुज्य