Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वायचिन्तामणिः
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सूत्रमें पडा हुआ तत् शब्द तो पूर्वमें कहे जा चुके द्वीप, समुद्रों, का परामर्श करनेके लिये है । यहां कोई शंका करता है कि जब पूर्वमें कहा जा चुकापन जम्बूद्वीपमें विशेषतारहित है तो जम्बूद्वीपके निर्देश हो जानेका भी प्रसंग हो जायगा । अर्थात्-तत् शद्ध करके जब सभी द्वीप समुद्रोंका आकर्षण हो जाता है तब तो अन्यद्वीप समुद्रोंके समान उस जम्बूद्वीपके मध्यमें भी जम्बूद्वीपके विराजनेका प्रसंग आता है, जो कि असंगत है । कैसा भी नरम वस्त्र होय या छोटा घडा होय स्वयं अपने मध्यभागमें पूरा नहीं समा सकता है । निश्चयनयसे भी अपने परिपूर्ण निजस्वरूपमें भले ही पदार्थ ठहर जाय, किन्तु अपने किंचित् मध्यभागमें तो कोई वस्तु नहीं ठहर पाती है। यों शंका करनेपर तो आचार्य कहते हैं कि प्रतिनियत हो रहे देशमें स्थित होने या प्रतिनियत आकार लम्बाई, चौडाई, आदि रूप करके वह जम्बूद्वीप तो जब समझाने योग्य ही हो रहा है । अतः उस जम्बूद्वीपको घेरे रहनेवाले समुद्र और द्वीपोंका ही तत् शब्द द्वारा परामर्श होना युक्त है । जैसे कि ग्रन्थके बीचका पत्र निकाल लो या पच्चीस विद्यार्थियों के बीचके विद्यार्थीको बुला लाओ । यहां प्रतिपादनीय नियत व्यक्तिको अगण्य कर शेष बहुभागका मध्य पकड लिया जाता है । पुनरपि किसीका आक्षेप है कि तब तो पूर्वोक्त समुद्र और द्वीपोंके निर्देशके लिये तत् शब्द है यों कहना चाहिये था । क्योंकि जम्बूद्वीपको परिक्षेप (घेरा ) करनेवाले द्वीप, समुद्रोंमें सबका आदिभूत लवण समुद्र है । अतः उन समुद्र और द्वीपोंके मध्यमें जम्बूद्वीप है, यह कहना ठीक है । किन्तु उन द्वीप समुद्रोंके मध्यमें जम्बूद्वीप है यों कहनेपर तो पहिले द्वीपपदसे जम्बूद्वीप ही पकडा जायगा । ऐसी दशामें जम्बूद्वीपके मध्यमें स्वयं जम्बूद्वीपका विराज जाना होनेसे हमारी पूर्वोक्त आत्माश्रय दोषवाल, शंका परिपुष्ट हो जाती है । पहिले द्वीपपदसे यदि घातकी खण्ड लिया जाय तब तो लवण समुद्र द्वारा जम्बूद्वीपका घिरा रहना छूट जायगा । अब आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना क्योंकि द्वीप, समुद्रों की स्थितिके क्रमकी नहीं विवक्षा करते सन्ते पूर्वोक्त द्वीप समुद्रोंके निर्देशके लिये तत् शब्द है । इस हमारे वचनका कोई विरोध नहीं आता है । जहां भी कहीं आगे या पीछे अवस्थित हो रहे द्वीप और समुद्रोंकी विवक्षा यहां उपजायी गयी है । अतः भले ही जम्बूद्वीपको सबसे पहिले घेरनेवाला लवण समुद्र है, तो भी इस स्थितिके क्रमका विचार नहीं कर श्री उमास्वामी महाराजने उन द्वीप समुद्रोंके मध्यम जम्बूद्वीपका विन्यास हो रहा कह दिया है । यद्यपि जम्बूद्वीपको घेरनेवाले द्वीप और समुद्रोंमें द्वीपोंकी अपेक्षा समुद्रोंकी संख्या एक अधिक है । तथा सबकी आदिमें जम्बूद्वीपका घेरा देनेवाला भी समुद्र ही है । सबके अन्तमें भी समुद्र पडा हुआ सबको घेर रहा है, फिर भी हम क्या करें व्याकरणके नियमोंकी अधीनतासे शद्वौका उच्चारण करनेके लिये हम या सूत्रकार महाराज पराधीन हैं । द्वंद्व समासमें जिस पदमें अल्पसे अल्प अच् (स्वर ) होंगे वह पद पहिले आजायगा । चाहे द्वीप और समुद्र यों समास करो अथबा अपनी इच्छानुसार समुद्र और द्वीप यों इतरतर योग करो द्वीप शद्बका पहिले निपात होकर