Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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'रहनेपर उसमें तेजोद्रव्य प्रवेश नहीं कर सकता है (प्रतिज्ञा ) मूर्त होनेसे (हेतु ) डेलके समान (अन्वय दृष्टान्त ) अर्थात्-डेल जिसमें प्रवेश करता है वह पदार्थ वैसाका वैसा ही नहीं बना रहता है। इसी प्रकार लोहमें अग्निके घुस जानेपर लोहा विनष्ट होकर दूसरा बदल जाता है। यह तुम्हारे एकत्व प्रत्यभिज्ञानका बाधक प्रमाण खडा हुआ है । आचार्य कहते हैं कि उन वैशेषिकोंका इस प्रकार कहना प्रशंसनीय नहीं है। क्योंकि उनके हेतुकी 'विपक्षमें व्यावृत्ति होना संदिग्ध हो रहा है, जैसे कि अर्हन् या बुद्धको सर्वज्ञपनेका अभाव साधते समय दिये गये वक्तृत्व, पुरुषत्व, हाथ पांव सहितपन आदि हेतुओंकी विपक्षसे व्यावृत्ति होना संदिग्ध है । अर्थात्-अर्हन्त ( पक्ष ) सर्वज्ञ नहीं हो सकते हैं (साध्य ) वक्ता होनेसे (हेतु ) गलीके मनुष्य समान ( अम्वय दृष्टान्त ) इस अनुमानका वक्तापन हेतु संदिग्धव्यभिचारी है। क्योंकि सर्वज्ञमें भी वक्तापन संभावित है । ज्ञानके प्रकर्ष होनेपर कोई वक्तापनका अपकर्ष हो रहा नहीं देखा जाता है । बल्कि ज्ञानके बढनेपर वक्तृत्व शक्ति बढ रही प्रतीत होती है । अथवा विपक्ष हो रहे सर्वज्ञमें पुरुषपना भी वर्त्त सकता है। इसी प्रकार मूर्तत्व हेतु भी संदिग्ध व्यभिचारी है । अतः वहका वही मूर्त पदार्थ बना रहनेपर भी तेजोद्रव्य प्रवेश कर सकता है ।छेदोंवाली भीतमें डेला प्रवेश कर जाता है, किन्तु भीत वह की यही बनी रहती है। गढमें गोली घुस जानेसे सहसा अवस्था नहीं बदल जाती है। पेटमें अन्न, पान, का प्रवेश करलेने पर देवदत्तके शरीरकी सर्वथा परावृत्ति नहीं हो जाती है । मूर्तिमान पदार्थमें मूर्तपदार्थ प्रवेश करता है । मूर्तमें कोई भी अमूर्त प्रवेश करता हुआ नहीं देखा गया है। आकाश, धर्म, अधर्म, और काल ये अमूर्त, पदार्थ तो जहांके तहां अवस्थित हैं । ये कहीं जाकर प्रवेश नहीं करते। इनमें भले ही कोई मूर्त पदार्थ प्रवेश कर जाय। हां, शुद्ध जीव मोक्षगमन करते समय ऊर्ध्वलोक प्रति गमन करता है। वह कोई बाण, डेल आदिके समान प्रवेश करनेवाला नहीं माना गया है । शेष संसारी जीव ती कर्म बन्धकी अपेक्षा सूर्त ही बने बनाये हैं। यदि यहां कोई यों आक्षेप करे कि देखो आकाशद्रव्य अमूर्त हो रहा मूर्तपुद्गलोंमें प्रवेश कर रहा देखा गया है। यों कहनेपर तो आचार्य कहते हैं कि बहां भी आकाशमें मूर्त्तिमान्का प्रवेश है। मूर्तिमानमें आकाशका प्रवेश नहीं है । आकाश तो व्यापक है कहांसे कहां जाय ? बादलोंके चलनेपर किसी किसीको चन्द्रमा चलता दीखता है । कभी काले बादलोंमें चंद्रमा घुसता दीखता है, यह सब भ्रांति है । अतः लोहपिण्डमें तिस प्रकारकी एकत्व प्रतीतिका कोई बाधक नहीं है। बाधारहित एकत्व प्रत्यभिज्ञानसे वहां एकत्व सिद्ध हो जाता है । वावदूक वैशेषिकों के सन्मुख हमने सारभूत कथन कह दिया है। अधिक प्रसंग बढानेसे कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकेगा उनका उत्पाद विनाश प्रक्रियाको दिखलाना कोरा फटाटोप मात्र है ।
ननु कमैव कार्मणमित्यस्मिन् पक्षे न तच्छरीरं पुरुषविशेषगुणत्वाध्यादिवदिति कश्चित्तं प्रत्याह ।