Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
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किया जा रहा है । अर्थात् - स्पर्शन आदि इन्द्रियोंके विषय तो नियत हैं । मनका विषय कोई नियत नहीं है, सभी ज्ञानोंद्वारा जानने योग्य विषयों को श्रुतज्ञानसे जानने के अवसरपर मन निमित्त हो जाता है । “सुदकेवलं च णाणं दोण्णिवि सरिसाण होंति बोहादो । सुदणाणं तु परोक्खं पञ्चक्खं केवलं गाणं” ( गोम्मटसार ) यों श्रुतज्ञानको केवलज्ञानका लघुभ्राता माना जात है
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अत्र स्पर्शनादींद्रियपरिच्छेद्यः स्पर्शादिरेवेति नियम्यते न पुनरनिंद्रियपरिच्छेद्यः तस्यानियतत्वात् । साकल्येन श्रुतज्ञानमात्रनिमित्तात् परिच्छिद्यमानस्य वस्तुनः श्रुतशब्देनामिधानात् । नन्वेवं सर्वमनिंद्रियस्येति वक्तव्यं स्पष्टत्वादिति चेन्न, परोक्षत्वज्ञापनार्थत्वाच्छ्रुतवचनस्य । न हि `यथा केवलं सर्व साक्षात् परिच्छिनत्ति तथानिंद्रियं तस्याविशदरूपतयार्थपरिच्छेदकत्वात् । ततः सूक्तं श्रुतमनिंद्रियस्येति ।
यहां इन्द्रियों का विषय निरूपण करनेवाले प्रकरणमें स्पर्शन आदि पांच बहिरंग इन्द्रियोंसे 'जानने योग्य स्पर्श, रस आदिक ही हैं, यह नियम किया जा रहा है। किंतु फिर अनिंद्रिय यानी मनसे जानने योग्य श्रुत ही है ऐसा नियम नहीं किया है । क्योंकि मन इन्द्रियसे जानने योग्य वह श्रुत ही नियत नहीं । सभी ज्ञानोंके ज्ञेयको श्रुतज्ञानसे जानमेपर मन निमित्तकारण बन जाता है । पहिले सूत्रमें अवधारण करना इस सूत्रमें नहीं । क्योंकि पांचों ज्ञानद्वारा सम्पूर्ण रूपसे जानने योग्य वस्तुओंको यहां सूत्रमें श्रुत शब्द करके उपलक्षणतया कहा जाता है । रहस्य यह है कि जगत् के सम्पूर्ण पदाथको जाननेमें अकेला श्रुतज्ञान निमित्त हो सकता है । पुनः किसीका कटाक्ष है कि " श्रुतमनिंद्रियस्य । ” ऐसा सूत्र न कह कर " सर्वमनिंद्रियस्य " यों स्पष्टपनेसे सूत्र कहना चाहिये, जिससे कि व्यामोह नहीं होकर सम्पूर्ण प्राणियोंको " मनके विषय सम्पूर्ण पदार्थ हैं " यह स्पष्ट प्रतिपत्ति हो जाय । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि परोक्षपना समझानेके लिये सूत्रमें श्रुत शब्द कहा है । जिस प्रकार केवलज्ञान सम्पूर्ण पदार्थोंको पूर्ण विशद रूपसे प्रत्यक्ष जान लेता है, उस प्रकार मन विशदरूपसे सबको नहीं जान पाता है । वह मन अविशद रूपसे सम्पूर्ण अर्थो का परिच्छेदक है, यह बात श्रुत कहनेसे ही व्यञ्जित हो सकती है । तिसी कारणसे सूत्रकारने यों बहुत अच्छा कहा था कि श्रुतज्ञान द्वारा ज्ञेय पदार्थ सभी मनका विषय है ।
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किमर्थमिन्द्रियमनसां विषयप्ररूपणमत्र कृतमित्याह ।
यहां तत्त्वार्थ सूत्रमें पांच इन्द्रिय और छठे मनके विषयोंका निरूपण किस लिये किया गया
है ? ऐसी 'जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी वार्तिक द्वारा समाधान कहते हैं ।
इति सूत्रद्वयेनाक्षमनोर्थानां प्ररूपणं ।
कृतं तज्जन्मविज्ञान निरालंबनता छिदे ॥ ३ ॥