Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
....... अथ मतं न गतिमानात्मा सर्वगतत्वादाकाशवदित्यनुमानाद्गतिमत्त्वस्य प्रतिषेधादनुमानविरुद्धः पक्ष इति । तदयुक्तं, पुंसः सर्वगतत्वासिद्धः काये एव तस्य संवेदनात् ततो बहिः संवित्त्यभावात् । सर्वगतः पुमान् नित्यत्वे सत्यमूर्तत्वादाकाशवदिति चेन, अस्य कालात्ययापदिष्टत्वात् साधनस्य धर्मिग्राहकममाणबाधितत्वात् प्रत्यक्षविरुद्धपक्षनिर्देशानंतरप्रयुक्तत्वात् शीतोनिर्दव्यत्वात् जलवदित्यादिवत् ।
अब यदि वैशेषिकोंका यह मन्तव्य होय कि आत्मा ( पक्ष ) गमनक्रियावाला नहीं है, ( साध्य ) सर्वत्र व्यापरहा होनेसे ( हेतु ) आकाशके समान ( अन्वयदृष्टान्त ) यों आत्माके गतिसहितपनका बढिया निषेध हो जानेसे तुम जैनोंका आत्माको क्रियाका साधक प्रतिज्ञास्वरूप पक्ष तो इस अनुमानसे विरुद्ध पड गया । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तुम्हारा वह कहना युक्तिरहित है। क्योंकि आत्माका सर्वगतपना असिद्ध है । शरीरमें ही उस आत्माका सम्वेदन हो रहा है। उससे बाहर दूसरे शरीरमें या घट, पट, अथवा अन्तरालमें आत्माकी सम्वित्ति नहीं हो रही है । अतः तुम्हारे हेतु स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है। यदि वैशेषिक पुनः अनुमान उठाकर हेतुको यों सिद्ध करें कि आत्मा (पक्ष) सर्वत्र व्यापक है (साध्य) नित्य होते सन्ते अमूर्तपना होनेसे (हेतु) आकाशके समान (दृष्टांत)। अकेला नित्यत्व हेतु देनेसे पृथिवी आदिकी परमाणुयें और मनसे व्यभिचार हो जाता । अतः अमूर्तत्व भी कहना पडा । क्योंकि ये मूर्त हैं और यदि अमूर्तत्व ही हेतु कहा जाता तो अनित्य गुणोंसे व्यभिचार आता । अतः " नित्यत्वे सति अमूर्तत्व " इतना हेतु दिया गया है। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि यह तुम्हारा साधन तो शरीरमें ही आत्मा नामक धर्मीके ग्राहक प्रमाणसे बाधित हो जानेके कारण प्रत्यक्ष प्रमाणसे विरुद्ध हो रहे पक्षके निर्देश अनन्तर प्रयुक्त होनेसे कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास है, जैसे कि अग्नि शीतल है, द्रव्य होनेसे जलके समान, अथवा आकाश अल्पपरिमाणवाला है, द्रव्य होनेसे, घटके समान, इत्यादिक अनुमानोंके हेतु बाधित हेत्वाभास हैं।
एतेनामूर्तद्रव्यत्वात्सर्वत्रोपलभ्यमानगुणत्वादित्येवमादयो हेतवः प्रत्याख्याताः प्रत्यक्षबाधितविषयत्वाविशेषात् । किं च, नित्यत्वे सत्यमूर्तत्वादित्ययं हेतुरीश्वरज्ञानेन अनेकांतिक: तस्यासर्वगतस्यापि नित्यत्वामूर्तत्वसिद्धेः नित्यं हीश्वरज्ञानमनाद्यनंतत्वात् सुरवर्त्मवत् । तस्य सादिपर्यतत्वे सति महेश्वरस्य सर्वार्थपरिच्छेदविरोधात् ।
वैशेषिकोंने आत्माको व्यापक साधनेके लिये अमूर्तद्रव्यपन हेतु दिया है । उनके यहां पृथिवी, जल, तेज, वायु, मन, ये पांच द्रव्य मूर्त माने गये हैं । शेष आकाश, काल, दिशा, आत्मा, ये चार द्रव्य व्यापक ही हैं । तीसरा हेतु सर्वत्र देखे जा रहे गुणसे सहितपना दिया है । चौथा हेतु " अणु