Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थीचन्तामणिः
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दूसरे शरीरका भी निमित्तकारण न्यारा तीसरा शरीर एवं तीसरको चौथा और चौथे को पांचवां आदि निमित्त कारणों की कल्पना करते करते कहीं दूरतक भी ठहरना नहीं होनेसे अनवस्था दोष हो
की आपत्ति है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह आक्षेप नहीं करना । क्योंकि कार्मण शरीरका निमित्त `वही कार्मण शरीर है। वर्तमान कार्मण शरीरका निमित्त पूर्वसंचित कार्मण और वह वर्तमान कार्मण शरीर भी उसके उत्तरकालमें होनेवाले कार्मणशरीरका निमित्त बन जाता है । इस ढंगसे संतानरूप करके निमित्त नैमित्तिक भाव होनेमें कोई विरोध नहीं आता है। रुपयोंसे रुपया उपजता है । मनुष्य मनुष्यका निमित्त है । पठन पाठन व्यवस्था बहुत दिनसे चली आ रही है। इसी प्रकार बीजांकुर कार्मण शरीरकी धारा बह रही हैं । यदि कोई यो पूंछ बैठे कि इस प्रकार तो अनवस्था दोष हो Goat आपत्ति है, आचार्य कहते हैं कि यह अनवस्था दोष नहीं है । क्योंकि उन कर्मों की धारावाहिक अनादिकालीन सन्तानका कार्यकारणभाव करके चले आनेमें कोई विरोध नहीं है । अर्थात् — अनवस्था सर्वत्र दोष नहीं है । कचित् गुण भी है । व्यसन या पापको छोडकर प्रायः सभी दोष लौकिक 1 अवस्थाओं में कदाचित् गुणस्वरूप परिणम जाते हैं । अन्योन्याश्रय, अनवस्था, संकर, विरोध, अभिमान, संशय, अज्ञान, धनाभाव, इत्यादिक दोषाभास कई स्थलोंपर गुण हो जाते हैं तथा पण्डिताई, एकता, धन, शीघ्रता, कार्यदक्षता, प्रशंसा, यौवन, अधिकार दीर्घदर्शिता ये लौकिकगुण अनेक स्थलों पर दोष गिने जाते हैं। कार्यकारण भावकी रक्षा कर रहीं अनवस्था यहां गुण है
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मिथ्यादर्शनादिनिमित्तत्वाच्च नानिमित्तं कार्मणं ततो नानिर्मोक्षप्रसंग ः । तच्चैवंविधं परमागमात्सिद्धं वैक्रियिकादिवत् युक्तितश्च यथाप्रदेशं साधयिष्यते ।
एक बात यह भी है कि मिथ्यादर्शन, अविरति, आदि निमित्तकारणों द्वारा उपजना होने से कार्मण शरीर निमित्तरहित नहीं है, तिस कारण उसके निश्शेष रूपसे मोक्ष नहीं होने का प्रसंग नहीं आता है। अर्थात् कार्मण यदि निमित्तरहित होता तो किसीकी भी मोक्ष नहीं हो पाती यह प्रसंग टल गया और तिस कारण इस प्रकारका वैक्रियिक आदिके समान वह कार्मण शरीर सर्वज्ञप्रतिपादित परम आगमसे सिद्ध हो जाता है तथा युक्तियोंसे भी सिद्ध हो जाता है । प्रकरण आनेपर यथायोग्य प्रदेश प्रन्थस्थल में वह कार्मणशरीर युक्तियोंसे साध भी दिया जायगा । शीघ्रता न करो ।
ननु यद्यौदारिकं स्थूलं तदा परं परं कीदृशमित्याह ।
यहां किसीका प्रश्न है कि यदि औदारिक शरीर स्थूल है तो परले परले वैक्रियिक आदिक शरीर भला कैसे हैं ? बताओ, ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रो कहते हैं ।
परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३७ ॥