Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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तस्यापि योनयः संति सचित्ताद्या यथोदिताः। स्वावारेण विना जन्म क्रियाया जात्वनीक्षणात् ॥१॥ तद्वैचित्र्यं पुनः कर्मवैचित्र्याद्विनियम्यते । कार्यवैत्रित्र्यसिद्धेस्तु कर्मवैचित्र्यनिर्णयः ॥२॥
उस जन्मके भी इस सूत्रमें कह चुके अनुसार सचित्त आदिक योनियां हैं ( प्रतिज्ञा ) अपने ( जन्मको ) ढकनेवाले ( योनिस्थान ) के विना जन्म लेना रूप क्रियाका कदाचित् भी देखना नहीं होता है ( हेतु ) उन योनियो और जन्मकी विचित्रता तो फिर अन्तरंग कारण हो रहे कर्मोकी विचित्रतासे हो जाती है। यों विशेषरूपसे नियम किया जा रहा है और सुख, दुःख आदिक कार्योके विचित्रपनकी सिद्धिसे तो कर्मोकी विचित्रताका निर्णय हो रहा है । भावार्थ-परिदृष्ट कारणोंका व्यभिचार हो जानेपर अतींद्रिय कारणोंकी सिद्धि हो जाती है । जब कि सुख, दुःख आदि अनेक प्रकारके विलक्षण पदार्थ दखि रहे हैं, अतः योनि, कुल, कर्म, आदिकी युक्तियोंसे सिद्ध कर ली जाती है।
न हि स्वभावत एव प्राणिनां सुखदुःखानुभवादिकार्यवैचित्र्यं नियमाभावप्रसंगात् । कालादेवेति चायुक्तं, एकस्मिन्नपि काले तद्वैचित्र्यानुभवात् । भूतवैचित्र्यात्सुखादिवैचित्र्यमिति चेत् न, सुखादेः भूतकार्यत्वनिषेधात् । ततः कर्मवैचित्र्यमेव सुखादिकार्यवैचित्र्यं गमयति, तयतिरेकेण दृष्टकारणसाकल्येपि कदाचिदनुत्पत्तेः, तच्च कर्मवैचित्र्यमस्य जन्मनिमित्तमिति पर्याप्तं प्रपंचकेन ।
___ अनेक प्राणियोंका सुख, दुःखके अनुभव या धन, पुत्र, आदिकी प्राप्ति अथवा शोक, हास्य, आदिकी दशामें डुबे रहना, उत्कृष्ट विद्वान् या मूर्ख बने रहना इत्यादिक कार्योकी देखी जा रही विचित्रतायें स्वभाव ही से तो नहीं हो जाती हैं। दूसरे निमित्त कारणों के विना ही सुखः दुःख, आदिकी उत्पत्ति माननेपर तो नियमके अभावका प्रसंग होता है । चाहे कोई भी जीव सुलभतासे विद्वान् , रोगी, मूर्ख, धनवान् , सुकुलवान् , दरिद्र, आदि बन बैठेगा। कोई देश, काल, व्यक्ति, आदिका नियम नहीं बन सकेगा। किन्तु उक्त कार्योंके होनेमें नियम देखा जा रहा है। अतः ये कार्य स्वभावसे ही न होकर किन्ही अतीन्द्रिय निमित्तोंसे होरहे मानने पडते हैं। कालसे ही सुखदुःख, आदि कार्योकी विचित्रता बन बैठती है यह कहना तो युक्त नहीं है। क्योंकि एक भी किसी कालमें उन कार्योकी विचित्रताका अनुभव हो रहा है । अर्थात्-उसी समयमें किसीको लाभ होता है अन्यको व्यापारमें हानि हो रही है। कोई बीमार हो रहा है, कोई उसी समय नीरोग, बलिष्ठ, खडा हुआ है, एक ऋतुमें कोई वृक्ष फलता फलता है, दूसरा वृक्ष सूख जाता है, यहांतक कि अौआ, खरबूजाकी बेल, रास्ना, वायसुरई, आदिक