Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
अन्यथा यानी सूत्रकारको त्रसस्थावर ग्रहणके साथ भी यदि इस सूत्रका सम्बन्ध अभीष्ट होता तो वे दोनों सूत्रोंको मिलाकर एक योग कर देते । और तैसा " समनस्कामनस्काः संसारिणस्नसस्थावराः ” यों एक योग कर देनेपर दो बार संसारीका ग्रहण नहीं करना पडता । लाघव हो जाता। किन्तु ऐसा एकयोग नहीं किया है । अतः सिद्ध है कि पहिले कहे जाचुके संसारी मुक्त ग्रहणका
और भविष्यके त्रसस्थावर ग्रहणका इस सूत्र के साथ सम्बन्ध नहीं जुडता है । तिस कारणसे सिद्ध है कि संसारी ही कोई कोई समनस्क हैं और बहुभाग कितने ही संसारी जीव अमनस्क हैं, इस प्रकार सूत्रका अर्थ व्यवस्थित हो जाता है ।
कुतस्ते तथा मता इत्याह ।
किसीका प्रश्न है कि किस कारणसे वे संसारी जीव तिस प्रकार मनसहित अथवा मनरहित दो प्रकारके माने गये हैं ? अच्छा होता कि वैशेषिक मत अनुसार सभी एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, आदि प्रत्येक जीवोंमें एक एक मन मान लिया जाता अथवा चार्वाक मत अनुसार किसी भी जीवके एक अतीन्द्रिय मनकी कल्पना न की जाय । जैनोंने भी तो मुक्त जीवोंके मन नहीं माना है । ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिक द्वारा समाधान कहते हैं।
समनस्कामनस्कास्ते मताः संसारिणो द्विधा । तद्वेदनस्य कार्यस्य सिद्धेरिष्टविशेषतः ॥ १॥
वे संसारी जीव कुछ मन इन्द्रियसे सहित हैं और शेष मन इन्द्रियसे रहित हैं, यों दो प्रकार माने गये हैं । क्योंकि इस विचारशाली मनके द्वारा बनाये गये विशेष ज्ञानरूप कार्यकी किन्हीं जीवोंमें प्रसिद्धि हो रही है। या मनसे रहित दशामें होनेवाले विलक्षण ज्ञान यानी अविचारक बुद्धि रूप कार्यकी किन्हीं जीवोंमें प्रसिद्धि हो रही है । तथा विशेष रूपसे इष्ट हो रहे आगमप्रमाणसे भी मनसे सहित और मनोरहित दो प्रकारके संसारी जीवोंकी व्यवस्था बन रही है।
___ समनस्काः केचित्संसारिणः शिक्षाक्रियालापग्रहणसंवेदनस्य कार्यस्य सिद्धरन्यथानुपपत्तेः, केचित्पुनरमनस्काः शिक्षाद्यग्राहिवेदनकार्यस्य सिद्धरन्यथानुपपत्तेः। इत्येताधता द्विविधाः संसारिणः सिद्धाः। ----
____कोई तोता, मैना, घोडा, हाथी, मनुष्य, स्त्री, देव, देवी, आदिक संसारी जीव ( पक्ष ) नो इन्द्रिय मनसे सहित हैं ( साध्य )। क्योंकि शिक्षापूर्वक क्रिया करना, आलाप करना, कथन अनुसार समझकर उठाना, धरना, इत्यादिक ज्ञानस्वरूप कार्यकी सिद्धि होना अन्यथा यानी मनको माने विना बन नहीं सकता है । अर्थात् –घोडा, हाथी, बैल, कुत्ता, विद्यार्थी, कन्या, ये जीव कहे हुये को सीख लेते हैं । इनका कोई विशेष नाम धर देनेपर तदनुसार आ जाते हैं, चले जाते हैं, उठाते,
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