Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
पृथिवीकाय, जल, जलकाय, आदि अजीव पदार्थ तो स्थावर नहीं हैं। क्योंकि जीव तत्त्वके भेद प्रभेदोंको गिनानके अवसरपर उन अजीवों का प्रस्ताव प्राप्त नहीं हैं। अर्थात्-ऋषिप्रोक्त शास्त्रोंमें इन प्रत्येकके पृथिवी आदिक चार भेद कहे हैं । पृथिवी, पृथिवीकाय, पृथिवी कायिक, पृथिवीजीव, एवं जल, जलकाय, जलकायिक, जलजीव, इत्यादि समझ लेना । मोटी, कठिनता, आदि गुण स्वरूप हो रही अचेतन मिट्टी, पत्थर, खडी, गेरू, कंकड, रत्न ये तो सामान्य रूपसे पृथिवी हैं। पृथिवीकायिक जीव द्वारा मरकर शीघ्र छोड दिया गया जडपिण्ड तो पृथिवीकाय बोला जाता है । जैसे कि मनुष्य मरता हुआ अपने शवको छोड देता है । वर्तमानमें जिस जीवके पृथिवीकाय वर्त रही है वह जीव पृथिवीकायिक है, जिसका कि अपनी आयुपर्यन्त उस कायसे सम्बन्ध बना रहता है । और जिस जीवके पृथिवीकायिक नामकर्मका उदय प्राप्त हो गया है, किन्तु अभीतक विग्रह गतिमे पडा हुआ कार्मण काय योगमें स्थित है, जबतक वह पृथिवीको नोकर्म शरीररूप करके ग्रहण नहीं करता है तबतक वह पृथिवीजीव है । यही ढंग अन्य जल आदि चारों भेदोमे लगा लेना। पहिलेके पृथिवी और पृथिवीकाय ये दो भेद तो अजीव स्वरूप हैं । और तीसरे चौथे ये दो भेद जीवतत्त्व हैं । अथवा पहिले दो भेदोंमें कोई विशेष अन्तर नहीं है, कुछ देर पहिले मरे हुये और बहुत दिन पहिले मरे हुये सब श्मशान भूमिमें गर्भित हो जाते हैं । अतः पृथिवीको सामान्य मान कर उत्तरवर्ती तीनों भेदोंमें उसका अन्वय कर लेना चाहिये । पृथिवीकाय और पृथिवीकायिक, जलकाय और जलकायिक, तेजस्काय और तेजस्कायिक, वायुकाय और वायुकायिक वनस्पतिकाय और वनस्पति कायिक ये स्थावर जीव हैं। शेष पृथिवी या पृथिवीकाय आदि जडोंको यहां स्थावरोंमें गिनना नहीं चाहिये ।
कुतस्तेऽवबोद्धव्या इत्याह ।
वे पृथिवीकायिक आदिक जीव कैसे किस प्रमाणसे समझ लेने चाहिये ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य समाधानको कहते हैं । उसको दत्तावधान होकर श्रवण करो।
जीवाः पृथ्वीमुखास्तत्र स्थावरा परमागमात् । सुनिर्बाधात्मबोद्धव्या युक्त्या एकेंद्रिया हि ते ॥ १॥
उन जीवोंमें पृथिवीकायिक, जलकायिक, आदिक जीव स्थावर हैं । ये सिद्धान्त प्ररूपित जीव तो भले प्रकार बाधाओंसे रहित हो रहे सर्वज्ञ उक्त, उत्कृष्ट, आगमसे अच्छे समझ लेने चाहिये । वे पृथिवीकायिक आदि जीव नियमसे युक्तियों करके भी एक स्पर्शन इन्द्रियवाले साध दिये जाते हैं । अर्थात्-सर्वज्ञकी प्रवाह धारासे चले आ रहे आगम द्वारा स्थावरों की सिद्धि प्रधान रूपसे हो जाती है तथा वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा युक्ति करके भी पृथिवी, जल, आदि शरीरोंको धारनेवाले जीवोंकी सिद्धि हो जाती है। सूक्ष्म यंत्रोंसे मट्टी या जलमें छोटे छोटे रेंगते हुये जो कीट दीखते हैं वे सब त्रस