Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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द्विविधानि, निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् , लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् , स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि" इन पांच सूत्रों करके नियत पांच इन्द्रियोंका व्याख्यान किया गया है।
इदानीमिंद्रियानिद्रियविषयप्रदर्शने कर्तव्ये, के तावदिद्रियविषया इत्याह ।
अब इस समय इन्द्रियों और अनिन्द्रियके द्वारा जानने योग्य विषय अर्थका प्रदर्शन करना कर्तव्य होनेपर शिष्यकी “ इन्द्रियोंके विषय तो भला कौन है ? " ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं।
स्पर्शरसगंधवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥ २० ॥
स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द ये उनके इन्द्रियों द्वारा ज्ञातव्य विषय हैं। अर्थात्-स्पर्शन इन्द्रियसे पुद्गलका स्पर्श जाना जाता है, रसना इन्द्रियसे पुद्गलका रस चखा जाता है। ब्राण इन्द्रियसे पुद्गलका गंध सूंघा जाता है । चक्षुःइन्द्रियसे पुद्गलका रूप देखा जाता है और कर्ण इन्द्रिय द्वारा पुद्गलकी पर्याय हो रहा शब्द सुना जाता है। गुण, और गुणीका अभेद होनेसे स्पर्शन इन्द्रिय द्वारा स्पर्शवान् पुद्गल भी आ जाता है, रसनेंद्रिय द्वारा रसवान् पुद्गल भी चखा जाता है आदि ।
स्पर्शादीनां कर्मभावसाधनत्वं द्रव्यपर्यायविवक्षोपपत्तेः । तच्छब्दादिद्रियपरामर्शः तेषामस्तदर्थाः स्पर्शनादीनां कर्मविषयः स्पर्शादय इत्यर्थः। तदर्था इति वृत्त्यनुपपत्तिरसामर्थ्यादिति चेत्, न चात्र गमकत्वात् नित्यसापेक्षेषु संबंधिशब्दवत् । य एव हि वाक्येयः संपवीयते स एव वृत्ताविति गमकत्वं नित्यसापेक्षेषु संबंधिशब्देषु कथितं, यथा देवदत्तस्य गुरुकुलं, देवदत्तस्य गुरुपुत्र देवदत्तस्य दासभार्येति । तथेहापि तच्छब्दस्य स्पर्शनादिसापेक्षत्वेपि गमकत्वात् वृत्तिर्वेदितव्या ।
द्रव्य और पर्यायकी विवक्षा बन जानेसे स्पर्श, रस, आदिक शब्द तो कर्म और भाव अर्थमें साध लिये जाते हैं, अर्थात्-जब प्रधान रूपसे द्रव्य विवक्षित होता है, तब इन्द्रिय करके विषय हो रहा द्रव्य ही पकडा जाता है। इस पुद्गल द्रव्यसे न्यारे कोई स्पर्श आदिक नहीं हैं। इन्द्रिय करके जो छूआ जाय वह स्पर्श है, चखा जाय वह रंस है, सूंघा जाय वह गंध है, देखा जाय सो वर्ण है, जो बोला जाय वह शब्द है, इस प्रकार स्पर्श आदिक शब्दोंकी कर्मसाधन निरुक्ति कर दी गयी है। किन्तु जब प्रधान रूपसे पर्याय विवाक्षत है, तब भेद बन रहा है। उदासीनपनेसे अवस्थित हो रहे भावका कथन हो जाता है, तब छूना ही स्पर्श है, चखना रस है, सूंघना गंध है, देखना मात्र वर्ण है, उच्चारण या सुनना शब्द है, इस ढंगसे स्पर्श आदि शब्दोंकी भावमें प्रत्ययकर सिद्धि कर दी गयी है । सूत्रमें पडे हुये पूर्वका परामर्ष करनेवाले तत् शद्बसे इन्द्रियों का परामर्श करलेना चाहिये । तब यों अर्थ हुआ कि उन इन्द्रियों के विषयभूत अर्थ यहां तदर्थ कहे जाते हैं। स्पर्शन, रसना, आदि इन्द्रियों के ज्ञातव्य बनने योग्य विषय ये स्पर्श