Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
- के पुनर्विशेषतस्त्रसा इत्याह ।
श्री उमास्वामी महाराजने संसारी जीवोंके त्रस और स्थावर ये दो भेद कहे थे, उनमें से स्थावर विशेषोंका वर्णन किया जा चुका है । पुनः अब ये बताओ कि विशेषरूपसे त्रस जीव कौन कौन हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर सूत्रकार महाराज उत्तर वचन कहते हैं। ---
द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः॥१४॥ दो स्पर्शन, रसना, इन्द्रियोंको धारनेवाले और स्पर्शन, रसना, घ्राण, इन तीन इन्द्रियोंको धारनेवाले आदिक जीव त्रस हैं।
द्वे स्पर्शनरसने इंद्रिये येषां ते द्वींद्रियाः कुम्यादयस्ते आदयो येषां ते इमे द्वींद्रियादय इति व्यवस्थावाचिनादिशद्धेन तद्गुणसंविज्ञानलक्षणान्यपदार्था वृत्तिरवयवेन विग्रहो समुदायस्य वृत्त्यर्थत्वात् ।
जिन जीवोंके स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियां विद्यमान हैं, वे लट, जौंक, गेंडुआ, संख, सीप, आदिक द्वीन्द्रिय जीव हैं । वे द्वीन्द्रिय जीव जिन जीवोंके आदिभूत हैं वे जीव ये द्वीन्द्रिय आदिक हैं, इस प्रकार आगममें हो रही व्यवस्थाको कहनेवाले आदि शब्दके साथ अन्य पदार्थको प्रधान रखनेवाली बहुव्रीहि समास नामकी वृत्ति है । समासमें पडे हुये उन शद्बोंके गुण ( अर्थ ) का अच्छ विज्ञान करादेना जिस वृत्तिका स्वरूप है अथवा एक देश हो रहे अवयवके साथ समासका पूर्ववर्ती विग्रह कर लिया जाता है और समासवृत्तिका अर्थ समुदाय हो जाता है। भावार्थ—समासघटित पदोंके अर्थसे अन्य अर्थको प्रधानरूपसे कहनेवाली बहुव्रीहि समास नामक वृत्ति है जैसे कि " दृष्टसागरमानय " जिसने समुद्रको देखा है ऐसे पुरुषको लाओ, यहां समासमें पडा हुआ पदका अर्थ न समुद्र लाया जाता है न देखना लाया जाता है किन्तु जो मनुष्य पहिले कभी समुद्रको देख चुका है वह पुरुष लाया जाता है, जो कि इन दो पदोंमेंसे किसीका भी अर्थ नहीं है । ऐसी दशामें जिन जीवोंके आदिमें द्वीन्द्रिय जीव हैं ऐसी वृत्ति करनेपर त्रीन्द्रिय आदि जीव तो पकड लिये जावेंगे। किन्तु द्वीन्द्रिय जीवोंका ग्रहण नहीं हो सकेगा, जैसे कि पर्वतसे आदि लेकर परली ओर देवदत्तके खेत हैं, इस वाक्यमें खेतोंमें पर्वत नहीं गिन लिया जाता है । बात यह है कि “ तद्गुणसंविज्ञान " और अतद्गुण संविज्ञान " ये दो बहुव्रीहि समासके भेद हैं । जहां समासघटित पदोंका अर्थ, भी वाच्य हो जाता है वह तद्गुण संविज्ञान है, जैसे कि " लम्बकर्णमानय " जिसके लम्बे कान हैं उसको लाओ, इस वाक्यके अनुसार लम्बे कानवाला मनुष्य लाया जाता है। यहां लम्बे कानका भी ले आना या ग्रहण हो जाता है । इसी प्रकार तद्गुण संविज्ञानसे ( अनुसार ) द्वीन्द्रिय जीवका भी अन्तर्भाव हो जाता है। द्वीन्द्रियको भी ग्रहण करनेका दूसरा उपाय यह है कि पूर्णरशिमेंस एक अवयवके साथ