________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१४ साधनसमर्थनस्यावश्यंभावित्वात्, केषांचिदसमर्थितसाधनवचने असाधनांगवचनस्येष्टेः / प्रकृतानुमानहेतोरशक्यसमर्थनत्वमपि नाशंकनीयं, तदुत्तरग्रंथेन तद्धेतोः समर्थननिश्चयात् / सकलशास्त्रव्याख्यानात्तद्धेतुसमर्थन-प्रवणात्तत्वार्थश्लोकवार्तिकस्य प्रयोजनवत्त्वसिद्धेः। प्रागेवापार्थकं प्रयोजनवचनमिति चेत्, तर्हि स्वेष्टानुमाने हेत्वर्थसमर्थनप्रपंचाभिधानादेव साध्यार्थसिद्धेस्ततः पूर्वं हेतूपन्यासोपार्थकः किन्न भवेत् / साधनस्यानभिधाने समर्थनमनाश्रयमेवेति चेत्, प्रयोजनवत्त्वस्यावचने तत्समर्थनं कथमनाश्रयं न स्यात् / ये तु प्रतिज्ञामनभिधाय तत्साधनाय हेतूपन्यासं कुर्वाणा: साधनमभिहितमेव समर्थयंते ते कथं स्वस्थाः। पक्षस्य गम्यमानस्य साधनाददोष इति चेत्, प्रयोजनवत्साधनस्य गम्यमानस्य समर्थने को दोषः संभाव्यते। सर्वत्र गम्यमानस्यैव तस्य समर्थनसिद्धेः प्रयोगो न युक्तः इति चेत्, संक्षिप्तशास्त्रप्रवृत्तौ सविस्तरशास्त्रप्रवृत्तौ वा? प्रथमपक्षे अत्यावश्यकता होती है। यदि कोई वादी बिना समर्थन किये हुए केवल साधन वचन (पंचमी विभक्त्यन्तवचन) कहते हैं - अर्थात् केवल साधन वचन कह देते हैं; उनका समर्थन नहीं करते हैं तब वह वचन 'असाधनांग' दोष दूषित है, ऐसा हमको इष्ट है। आध्यायघातिसंघातघातनं (चारों तरफ से बुद्धि का समागम और घातिया कर्मों के समूह का नाश) इन दोनों प्रयोजनों को अनुमान से सिद्ध करने वाले प्रकरण प्राप्त विद्यास्पदत्व हेतु का समर्थन हो ही नहीं सकता, ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए - क्योंकि इस ग्रन्थ श्लोकवार्त्तिक के उत्तर भाग के द्वारा 'विद्यास्पदत्व' हेतु का समर्थन निश्चित है। सकल शास्त्र (सम्पूर्ण तत्त्वार्थसूत्र) का व्याख्यान करने वाला तथा “विद्यास्पदत्व" हेतु का समर्थन करने में तत्पर होने से ही तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक के प्रयोजनत्व (फलवान) की सिद्धि है अर्थात् यह ग्रन्थ स्वयं हेतु का समर्थन करने वाला है, अन्यथा इस ग्रन्थ के प्रयोजन की सिद्धि नहीं हो सकती। ग्रंथ के प्रारम्भ में प्रयोजन का उल्लेख आवश्यक है शंका - (बौद्ध शंकाकार कहता है कि) ग्रन्थ का. पहले से ही प्रयोजन कह देना व्यर्थ है? उत्तर - यदि ऐसी शंका करोगे तो आपके अभिप्रेत अनुमान में हेतु के लिए समर्थन के प्रपंच (सामग्री)के कथन से ही साध्य रूप अर्थ (प्रयोजन) की सिद्धि हो जाने से आपके भी उसके पहले से ही हेतु का कथन करना व्यर्थ क्यों नहीं होगा? अर्थात् आपका हेतु भी व्यर्थ होगा। ____साधन के कथन बिना, समर्थन करना अनाश्रय होगा (आश्रयरहित होगा)। ऐसा भी कहना उचित नहीं है - क्योंकि ऐसा कहने पर प्रयोजन (फल बताने वाले) वचन का कथन नहीं करने पर प्रयोजन का समर्थन करना बिना अवलम्ब का क्यों नहीं हो जावेगा? जो विद्वान् पक्ष में साध्य के रहने रूप प्रतिज्ञा को न कहकर केवल हेतु का कथन करते हुए, कहे हुए साधन का ही समर्थन करते हैं, वे स्वस्थ (ज्ञानी) कैसे हैं? “गम्यमान (प्रकरण से जाने हुए) पक्ष का साधन से समर्थन करने में कोई दोष नहीं है" ऐसा कहोगे तो हम भी कह सकते हैं कि गम्यमान प्रयोजनवत्व साधन का समर्थन करने में कौनसा दोष संभावित है - अर्थात् कोई दोष नहीं है।