________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-७८ मदन्ये पुरुषाः सर्वज्ञज्ञापकोपलंभशून्याः पुरुषत्वात्कायादिमत्त्वाद् यथाहमिति वचस्तमोविलसितमेव। हेतोः स्याद्वादिनानैकांतात्। तस्य पक्षीकरणाददोष इति चेत् ।न / पक्षस्य प्रत्यक्षानुमानबाधप्रसक्तेः। सर्वज्ञवादिनो हि सर्वज्ञज्ञापकमनुमानादिस्वसंवेदनप्रत्यक्षं प्रतिवादिनच तद्वचनविशेषोत्थानुमानसिद्धं सर्वपुरुषाणां सकलवित्साधनानुभवनशून्यत्वं बाधते हेतुश्शातीतकालः स्यादिति नासर्वज्ञवादिनां सर्वविदो बोद्धारो न केचिदिति वक्तुं युक्तम्। भावार्थ - मीमांसक ऐसा अनुमान कहेंगे कि कोई भी मानव सर्वज्ञ को जानने वाला नहीं है, क्योंकि सभी मानव हैं- शरीर, इन्द्रिय आदि से विशिष्ट हैं तथा वक्ता हैं। जो-जो पुरुष है, इन्द्रियं और शरीर से विशिष्ट है (इन्द्रिय और शरीर से युक्त है) और व्याख्याता है, वह सर्वज्ञ को जानने वाला नहीं हो सकता। जैसे सशरीरी, व्याख्याता, पंचेन्द्रिय मानव होने से मैं सर्वज्ञ को जानने वाला नहीं हूँ इस अनुमान में कथित सशरीरत्व आदि हेतु. अनुमान ज्ञान के द्वारा और आगम ज्ञान के द्वारा सर्वज्ञ को जानने वाले स्याद्वादी विद्वान् से व्यभिचार को प्राप्त होता है। क्योंकि स्याद्वादी पुरुष है, शरीरधारी है और वक्ता भी है। किन्तु अनुमान प्रमाण से सर्वज्ञ को जानता है। अतः यह हेतु अनेकान्त हेत्वाभास है। : ___ "मेरे से अतिरिक्त सर्व मानव सर्वज्ञ के ज्ञापक प्रमाण से शन्य (रहित ) हैं पुरुष होने से, या सशरीरी होने से, जैसे मैं'' इस प्रकार का मीमांसकों का वचन (कथन) महान् अज्ञान रूपी अन्धकार का खिलवाड़ है। क्योंकि उन हेतुओं का स्याद्वादी विद्वान् से व्यभिचार है। अर्थात् यह हेतु सर्वज्ञ को जानने वाले विपक्षी स्याद्वादियों में भी जाता है। वे सशरीरी व्याख्याता पुरुष होते हुए भी सर्वज्ञ को जानते हैं। स्याद्वादी को पक्षकोटि में रखने से दोष नहीं आता है अर्थात् स्याद्वादी को भी सर्वज्ञ का ज्ञान नहीं है, ऐसा कहने पर हमारे हेतु व्यभिचारी नहीं होगा। ऐसा भी कहना उचित नहीं है- क्योंकि स्याद्वादी सर्वज्ञ को नहीं जानते हैं। इस पक्ष के प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से बाधा आने का प्रसंग आता है। अर्थात् यह पक्ष अनुमान और प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है। क्योंकि सर्वज्ञवादी के सर्वज्ञ के ज्ञापक अनुमान आदि प्रमाण स्वसंवेदन प्रत्यक्ष हैं और प्रतिवादी को पूर्वापर अविरुद्ध वचनों से उत्पन्न अनुमान के द्वारा सर्वज्ञ के ज्ञापक प्रमाणों का ज्ञान करा देना सिद्ध ही है। अतः स्वसंवेदन और अनुमान ज्ञान के द्वारा सिद्ध सर्वज्ञ के ज्ञापक प्रमाण मीमांसक के द्वारा कथित अनुमान को बाधित करते हैं। इसलिये "सभी मानव सर्वज्ञ के साधक अनुभव से रहित हैं," यह हेतुबाधित हेत्वाभास है। क्योंकि सर्वज्ञ के साधक अनुभव की सिद्धि होने के पश्चात् यह हेतु दिया गया है। इसलिए 'सर्वज्ञ के ज्ञाता कोई नहीं है' ऐसा असर्वज्ञवादी मीमांसकों का कथन युक्तिसंगत नहीं है।