Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 01
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 428
________________ परिशिष्ट-३९५ परिशिष्ट : 1 पारिभाषिक लक्षणावली * अनवस्था दोष : एक को सिद्ध करने के लिए दूसरे का, दूसरे को सिद्ध करने के लिए तीसरे का, उसको सिद्ध करने के लिए चौथे का आश्रय लिया जाता है... वहाँ अनवस्था दोष होता है। अनेकान्तिक हेत्वाभास : जो हेतु पक्ष और सपक्ष में रहता हुआ विपक्ष (साध्य के अभाव) में भी रहता है उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। संदिग्ध साध्य वाले धर्मी को पक्ष कहते हैं। साध्य के समान धर्म वाले धर्मी को सपक्ष कहते हैं और साध्य से विरुद्ध धर्म वाले धर्मी को विपक्ष कहते हैं। जो हेतु इन तीनों में रहता है उसे अनैकान्तिक या व्यभिचारी हेतु कहते हैं। अन्यथानुपपति : साध्य के बिना साधन के नहीं होने को अन्यथानुपपत्ति कहते हैं। . अन्वय : जिसके होने पर जो होता है, उसे अन्वय कहते हैं। (साध्य के साथ निश्चय से व्याप्ति रखने वाला साधन जहाँ पर दिखलाया जावे वह अन्वय दृष्टान्त है। जैसे- जहाँ जहाँ धूम वहाँ वहाँ अमि-जैसे रसोई घर) * अर्थापत्ति : जिसके बिना जो न हो सके, ऐसे अदृष्ट पदार्थ के जानने को अर्थापत्ति कहते हैं। जैसे- मोटे . पुष्ट देवदत्त को देखकर दिन में खाने की बाधा उपस्थित हो जाने पर रात्रि में भोजन करना अर्थापत्ति से जान लिया जाता है। प्रमाणषट्कविज्ञातो यत्रार्थो नान्यथा भवेत् / . अदृष्टं कल्पयेदन्यत् सार्थापत्तिरुदाहता॥ * उपनय : ‘हेतोरुपसंहार उपनयः' हेतु के उपसंहार को उपनय कहते हैं। हेतु का पक्ष धर्मरूप से उपसंहार : * करना अर्थात् 'उसी प्रकार यह धूमवाला है' इस प्रकार से हेतु का दुहराना उपनय है। * उपमान ज्ञान : 'उपमानं प्रसिद्धार्थसाधात् साध्यसाधनम्' प्रसिद्ध पदार्थ की समानता से साध्य के साधन को अर्थात् ज्ञान को उपमान ज्ञान कहते हैं। सदृश पदार्थ के देखने पर सादृश्यज्ञान का स्मरण करते हुए इसके सदृश यह है, ऐसा ज्ञान उपमान ज्ञान है। * कालात्ययापदिष्ट : 'प्रत्यक्षागमबाधितकाला (पक्षा) नन्तरं प्रयुक्तत्वात्कालात्ययापदिष्टः' जो हेतु प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित पक्ष के अनन्तर प्रयुक्त होता है, उसे कालात्ययापदिष्ट कहते हैं। * खारपटिक शास्त्र : खरपट मत के शास्त्रों में लिखा है कि स्वर्ग का प्रलोभन देकर जीवित ही धनवान को मार डालना चाहिए, एतदर्थ काशीकरवत, गंगाप्रवाह, सतीदाह आदि कुत्सित क्रियाएँ इनके मत में प्रकृष्ट मानी गयी हैं। * खड्गी : जैनमत में जैसे अन्तकृत् केवली होते हैं, उसी प्रकार बौद्धों के यहाँ तलवार आदि से घात को - प्राप्त हुए कतिपय मुक्तात्मा माने गये हैं, उन्हें खड्गी कहते हैं।

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