________________ परिशिष्ट-४०० 卐 सांख्य दर्शन सांख्यदर्शन के प्रमुख प्रवक्ता कपिल हैं। इस द्वैतवादी दर्शन का उद्देश्य प्रकृति और पुरुष की विवेचना करके उनके अलग-अलग स्वरूप को दर्शाना है। प्रायः गणनार्थक ‘संख्या' से सांख्य शब्द की व्युत्पत्ति मानी जाती है परन्तु इसका वास्तविक अर्थ है- विवेकज्ञान / संख्या शब्द सम् पूर्वक चक्षिङः ख्याञ्' धातु से बनता है, जिसका अर्थ है 'सम्यक् ख्यानम्' अर्थात् सम्यक् विचार। इसी को विवेक कहते हैं। जब मनुष्य विवेक द्वारा यह जान लेता है कि पुरुष प्रकृति से भिन्न है, तब उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ___सांख्यशास्त्र में तत्त्वों के चार प्रकार स्वीकृत हैं- (1) प्रकृति (2) प्रकृति-विकृति, उभयात्मक (3) केवल विकृति और (4) अनुभयात्मक-दोनों से भिन्न / सांख्य दर्शन के अनुसार तत्त्व पच्चीस हैं- प्रकृति, महत् तत्त्व, अहंकार, पञ्च तन्मात्राएँ, एकादश इन्द्रियाँ, पञ्च महाभूत और पुरुष / इनमें से प्रकृति कारण ही है, कार्य नहीं। महान्, अहंकार और पंच तन्मात्रायें कार्य और कारण दोनों हैं। शेष सोलह (11 इन्द्रियाँ और 5 महाभूत) केवल कार्य हैं, कारण नहीं। पुरुष न किसी का कारण है और न कार्य। सांख्य का एक प्रमुख सिद्धान्त है- सत्कार्यवाद अर्थात् जो कुछ इस जगत् में है, वह सदा से है और जो नहीं है, वह कभी नहीं होता। इसके दो रूप हैं परिणामवाद और विवर्तवाद। सत्त्व, रज और तम - इन तीन गुणों की साम्यावस्था का नाम प्रकृति है। प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि का निर्माण होता है। प्रकृति और पुरुष का संयोग अन्धे और लंगड़े का संयोग है। दोनों मिलकर रास्ता तय करते हैं। प्रकृति भोग्या और पुरुष भोक्ता है। परस्परापेक्षा रखने वाले इस प्रकृति और पुरुष के द्वारा सृष्टि का क्रम चलता रहता है। सांख्य के मत में आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक तीन प्रकार के दुःखों से सर्वथा निवृत्त हो जाना ही मुक्ति है। मुक्ति भी दो प्रकार की है- जीवन्मुक्ति और विदेहमुक्ति। मुक्ति के साधन हैं (1) प्रकृति का यथार्थ बोध। (2) ध्यान - ध्यान तभी सम्भव है, जब मनुष्य रागरहित हो जाए। (3) निष्काम भाव से अपने आश्रमविहित कर्मों का पालन करना। (4) अभ्यास और वैराग्य। यह दर्शन आत्मा को कूटस्थ नित्य मानता है, पुनर्जन्म को स्वीकार करता है, कर्मफल और परलोक में इसका विश्वास है। ईश्वर नहीं है। इनके अनुसार वेद प्रमाण हैं पर वैदिक यज्ञादि इन्हें अमान्य हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम (आप्त वचन)- ये तीन प्रमाण हैं। आत्माएँ अनन्त हैं। सांख्य के अनुसार प्रकृति केवल की है और पुरुष केवल भोक्ता है। प्रकृति के समस्त कार्य पुरुष के लिए होते हैं, पुरुष प्रकृति का अधिष्ठाता