________________ तत्वार्थश्लोकवार्तिक-१४४ शरीरादय एवास्य यधुपादानहेतवः। तदा तद्भावभावित्वं विज्ञानस्य प्रसज्यते // 123 / / व्यतीतेऽपींद्रियेऽर्थे च विकल्पज्ञानसंभवात् / न तद्धेतुत्वमेतस्य तस्मिन्सत्यप्यसंभवात् // 124 // कायशेत्कारणं यस्य परिणामविशेषतः / सद्यो मृततनुः कस्मात्तथा नास्थीयतेमुना // 125 // वायुविश्लेषतस्तस्य वैकल्याच्चेन्निबंधनम् / चैतन्यमिति संप्राप्तं तस्य सद्भावभावतः॥१२६॥ सामग्रीजनिका नैकं कारणं किंचिदीक्ष्यते। विज्ञाने पिष्टतोयादिर्मदशक्ताविवेति चेत् // 127 // संयुक्ते सति किं न स्यात्क्ष्मादिभूतचतुष्टये। . . चैतन्यस्य समुद्भूतिः सामग्र्या अपि भावतः // 128 // तथा इन्द्रियव्यापार और पदार्थ के होने पर भी ज्ञान की असम्भवता है। अर्थात् मूर्च्छित वा मृतक जीव के शरीर और इन्द्रियों के होने पर भी ज्ञान की संभवता नहीं है। अतः शरीर आदि ज्ञान के सहकारी कारण तो हो सकते हैं परन्तु उपादान कारण नहीं हो सकते॥१२३-१२४ // परिणामविशेष युक्त काय को चैतन्य का उपादान कारण मान लेने पर शीघ्र ही मरे हुए प्राणी का शरीर उसी प्रकार चैतन्य परिणति का कारण क्यों नहीं होता है। अर्थात् शीघ्र मरा हुआ वह शरीर भी पूर्व की भाँति चैतन्य परिणति सहित हो जाना चाहिए। (यदि चार्वाक यो कहेंगे कि) मृतक शरीर से प्राणवायु निकल जाती है अतः मृतक शरीर वायुविश्लेष से रहित होने से चैतन्य का उपादान कारण नहीं है। ऐसा मानने पर तो वायु का सद्भाव होने पर ही चैतन्य का अस्तित्व और वायु के न रहने पर चैतन्य का अभाव है- ऐसा मानना होगा॥१२५-१२६॥ चार्वाक कहता है कि- जैसे मदशक्ति की उत्पत्ति में पिठीका जल, गुड़, महुआ आदि कारणों की पूर्णता रूप सामग्री कारण है , अकेला महुआ आदि मदशक्ति का कारण नहीं है; उसी प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चारों तत्त्वों का समुदाय विज्ञान की उत्पत्ति का उपादान कारण है। जो कारणों की समग्रता कार्य को उत्पन्न करती है वह किंचित् एक कारणजन्य नहीं देखी जाती है॥१२७॥ इसके प्रत्युत्तर में जैनाचार्य कहते हैं कि दालादि पकाते समय पृथ्वी, पानी, वायु और अग्नि स्वरूप भूतचतुष्टय का संयोग होने पर भी उसमें चैतन्य की उत्पत्ति क्यों नहीं होती है, जबकि उसमें कारण समुदाय स्वरूप सामग्री का सद्भाव पाया जाता है // 128 // यदि कहो कि- पृथ्वी आदि की अतिशयधारी विशिष्ट पर्याय का अभाव होने से दाल पकने के बर्तन में चैतन्य उत्पन्न नहीं होता है, तो प्रश्न है कि वह विशिष्ट परिणाम कौनसा माना गया है?