________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 369 तस्य यवांकुरजनने न शालिबीजस्येति कथ्यते / तत्र कुतस्तच्छक्तेस्तादृशः प्रतिनियमः? स्वभावत इति चेत् न, अप्रत्यक्षत्वात् / परोक्षस्य शक्ति प्रतिनियमस्य पर्यनुयुज्यमानतायां स्वभावैरुत्तरस्यासंभवात्, अन्यथा सर्वस्य विजयित्वप्रसंगात्। प्रत्यक्षप्रतीत एव चार्थे पर्यनुयोगे स्वभावैरुत्तरस्य स्वयमभिधानात् / कथमन्यथेदंशोभेत,-"यत्किंचिदात्माभिमतं विधाय निरुत्तरस्तत्र कृतः परेण / वस्तुस्वभावैरिति वाच्यमित्थं, तदुत्तरं स्याद्विजयी समस्तः // 1 // प्रत्यक्षेण प्रतीतेऽर्थे, यदि पर्यनुयुज्यते। स्वभावैरुत्तरं वाच्यं, दृष्टे कानुपपन्नता // 2 // " इति / शालिबीजादेःशाल्यंकुरादिकार्यस्य दर्शनात्तजननशक्तिरनुमीयत इति चेत्, तस्य तत्कार्यत्वे वहाँ कार्य, कारण के प्रकरण में उपर्युक्त योग्यता रूप शक्ति का वैसा प्रत्येक में नियम बौद्ध कैसे कर सकता है ? यदि बौद्ध पदार्थों के स्वभाव से ही योग्यता का नियम करना मानते हैं (अर्थात् अग्नि का कार्य दाह करना है। अत: यह शक्तियों का प्रतिनियम उन-उन पदार्थों के स्वभाव से हो जाता है। अग्नि दाह क्यों करती है? इसका उत्तर उसका स्वभाव ही है, यह कहना) सो ठीक नहीं है। क्योंकि असर्वज्ञों को शक्तियों का प्रत्यक्ष नहीं होता है। परोक्ष शक्तियों के प्रत्येक विवक्षित पदार्थ में नियम करने पर "क्यों करता है?" यह प्रश्न होने पर उस समय आप बौद्धों की ओर से पदार्थों का स्वभाव ही है, ऐसा उत्तर देना असम्भव है। अन्यथा यानी इसके प्रतिकूल प्रत्यक्ष न करने योग्य कार्यों में भी प्रश्नमाला के उठाने पर स्वभावों के द्वारा उत्तर दे दिया जावेगा। तो सभी वादी-प्रतिवादियों को जीत जाने का प्रसंग आयेगा, स्वभाव कह कर सभी जीत जावेंगे। प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा जाने गये ही अर्थ में यदि तर्क उठाया जाता है तब तो वस्तु के स्वभावों करके उत्तर देना समुचित है। (किन्तु परोक्ष प्रमाण से अविशद जाने गये पदार्थ में प्रश्न उठाने पर वस्तु स्वभावों करके उत्तर नहीं दिया जाता है) इस बात को बौद्धों ने भी स्वयं स्वीकार किया है। जो पदार्थ प्रत्यक्ष ही नहीं है, वहाँ यह उत्तर कैसे संतोषजनक हो सकता है कि हम क्या करें, यह तो वस्तु का स्वभाव ही है। .. अन्यथा (यदि प्रत्यक्षित कार्य के होने पर स्वभावों से उत्तर देना और परोक्ष में स्वभाव के द्वारा उत्तर न देना यह न्याय न मानकर अन्य प्रकार से) मानोगे तो आपका इन दो श्लोकों के द्वारा यह कथन कैसे शोभा देगा कि जो कुछ भी अपने को अभीष्ट तत्त्व है, उसका प्रतिवादी के सन्मुख पूर्वपक्ष करके पीछे प्रतिवादी के द्वारा समीचीन दोष उठाने से यदि वादी वहाँ निरुत्तर कर दिया जावे तो भी वादी चुप न बैठे, किन्तु ऐसा ही वस्तु का स्वभाव है इस प्रकार से उस प्रतिवादी के दोष-उत्थापन का उत्तर देता रहे, ऐसा करने पर तो सब ही वादी विजयी हो जावेंगे॥१॥ प्रत्यक्षप्रमाण के द्वारा अर्थ के निर्णीत होने पर यदि कोई शंका उठावे तो वस्तु स्वभाव को कहकर उत्तर देना चाहिए। क्योंकि सभी परीक्षकों के द्वारा देखे गये स्वभावों में क्या कभी असिद्धि हो सकती है? अर्थात् नहीं // 2 // 'धान के बीजरूप कारण से धान का अंकुररूप कार्य और जौ के बीज से जौ का अंकुर रूप कार्य होता हुआ देखा जाता है। अतः उनको पैदा करने वाली शक्ति का उन बीजों में अनुमान कर लिया जाता है।' बौद्ध के ऐसा कहने पर आचार्य कहते हैं कि बौद्ध उस धान अंकुर को उस धान बीज का कार्यपना प्रसिद्ध होने पर जननशक्ति का अनुमान करते हैं? अथवा धान अंकुर को धानबीज का