Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 01
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 410
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 377 कालविच्छेदस्य भ्रांतत्वे नित्यं, देशविच्छेदस्य सर्वगतमाकारस्य निराकारमंशविच्छेदस्य निरंशं ब्रह्म सिद्धं क्षणिकाद्वैतं प्रतिक्षिपति। इति कथमनिष्टं सौगतस्य न स्यात् ? नित्यादिरूपसंवित्तेरभावात्तदसंभवे / परमार्थात्मतावित्तेरभावादेतदप्यसत् // 135 / / न हि नित्यत्वादिस्वभावे परमार्थात्मादिस्वभावे वा संवित्त्यभावं प्रति विशेषोऽस्ति, यतो ब्रह्मणो सत्यत्वे क्षणिकत्वे संवेदनाद्वैतस्यासत्यत्वं न सिद्धयेत् / ___ यदि ज्ञान में भिन्न समय के ज्ञान परिणामों का व्यवधान करने वाले कालविच्छेद को भ्रांत होना मानोगे तो संवेदन नित्य हो जावेगा। क्योंकि काल का विच्छेद ही तो उसके क्षणिक अनित्य को बनाये हुए था। ऐसे ही भिन्न-भिन्न देशों की विशेषता को करने वाले देशविच्छेद को आप भ्रान्त मानेंगे तो वह संवेदन सर्वव्यापक बन जावेगा क्योंकि आकाश के एक-एक प्रदेश में पड़ा ज्ञान का एक-एक परमाणु आपने एकदेशवृत्ति अव्यापक माना है। किन्तु देश का अंतराल यदि टूट जावेगा तो ज्ञान व्यापक हो जावेगा। इसी प्रकार आकारों के विशेषों को भ्रांतरूप मानलोगे तो संवेदन निराकार हो जावेगा (किन्तु आपने ज्ञान को साकार माना है। ज्ञान की साकारता ही आपके मत में प्रमाणता का प्राण है) तथा पृथक्पृथक् ज्ञान परमाणुओं के अंशों में पड़े हुए अंशविच्छेदों को यदि भ्रांत कहोगे तो संवेदन निरंश हो जावेगा। (किन्तु आपने ज्ञानों को स्वकीय-स्वकीय शुद्ध अंशों से सांश माना है।) अतः विच्छेदों के भ्रांतपने हो जाने से ब्रह्मवादियों का मत सिद्ध होता है। क्योंकि ब्रह्मवादी अपने ब्रह्मतत्त्व को नित्य, व्यापक, निराकार और निरंश मानते हैं। अतः परमब्रह्म की सिद्धि हो जाना ही आपके माने हुए क्षणिक संवेदनाद्वैत का खण्डन कर देती है। यह बौद्धों को अनिष्ट क्यों नहीं है, अवश्य ही है। __ (बौद्ध कहे कि) नित्य, व्यापक, निराकार और निरंश आदि स्वरूप वाले ऐसे परब्रह्म की ज्ञप्ति नहीं होती है। अतः उस ब्रह्मतत्त्व का सिद्ध होना असम्भव है। ऐसा कहने पर तो (हम भी कहेंगे) कि परमार्थस्वरूप क्षणिक अद्वैत संवेदन की ज्ञप्ति नहीं हो रही है। अतः (बौद्धों का) यह संवेदनाद्वैत भी असत् पदार्थ है यानी कुछ भी नहीं है।।१३५ // जैसे बौद्ध कहते हैं कि नित्य, व्यापक होना आदि स्वभाव वाले ब्रह्म की ज्ञप्ति का कोई उपाय नहीं है, वैसे ही आपके परमार्थभूत, क्षणिक, साकार, परमाणुस्वरूप स्वांश आदि स्वभाव वाले संवेदन की भी किसी को ज्ञप्ति नहीं हो रही है। परमब्रह्म और संवेदन की भी किसी को ज्ञप्ति नहीं हो रही हैं। अतः परमब्रह्म और संवेदन में समीचीन ज्ञप्ति न होने की अपेक्षा से कोई अन्तर नहीं है। जिससे कि (बौद्ध के) कथनानुसार ब्रह्मतत्त्व का असत्यपना तो सिद्ध हो जावे और क्षणिक होते हुए भी उनके द्वारा संवेदनाद्वैत का असत्यपना सिद्ध न होवे। क्योंकि जो तत्त्व प्रमाणों से नहीं जाना जाता है, उसके सत्त्व की सिद्धि नहीं मानी जाती है।

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