Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 01
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 403
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 370 प्रसिद्धेऽप्रसिद्धेऽपि वा? प्रथमपक्षेऽपि कुतः शाल्यंकुरादेः शालिबीजादिकार्यत्वं सिद्ध ? न तावदध्यक्षात्तत्र तस्याप्रतिभासनात्, अन्यथा सर्वस्य तथा निशयप्रसंगात् / तद्भावभावाल्लिंगात्तत्सिद्धिरिति चेत्र, साध्यसमत्वात्। को हि साध्यमेव साधनत्वेनाभिदधातीत्यन्यत्रास्वस्थात् / तद्भावभाव एव हि तत्कार्यत्वं न ततोऽन्यत् / शालिबीजादिकारणकत्वाच्छाल्यंकुरादेस्तत्कार्यत्वं सिद्धमित्यपि तादृगेव / परस्पराश्रितं चैतत्, सिद्धे शालिबीजादिलारणकत्वे शाल्यंकुरादेस्तत्कार्यत्वसिद्धिस्तत्सिद्धौ च कार्यपना नहीं प्रसिद्ध होते हुए भी कारणशक्ति का अनुमान कर लेते हैं ? पहला पक्ष लेने पर धान के अंकुर आदि को धानबीज आदि का कार्यपना आपने कैसे सिद्ध किया है ? पहले प्रत्यक्ष प्रमाण से तो यह सिद्ध नहीं हो सकता है कि धानबीज का कार्य धान अंकुर है। (क्योंकि जिस क्यारी में धान, जौ, गेहूँ एक साथ बो दिये गये हैं, वहाँ गीली मिट्टी के भीतर सब ही बीज छिप गये हैं। ऐसी दशा में किस बीज से कौनसा अंकुर हुआ है, इसका निर्णय करना बहिरिन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष का कार्य नहीं है) वहाँ प्रत्यक्ष में उस कार्यकारण का प्रतिभास नहीं होता है। अन्यथा सभी को उसी प्रकार से निर्णय होने का प्रसंग आता है। (अतः प्रत्यक्ष से कारण की कार्य को उत्पाद कराने वाली शक्ति का और कार्य की कारणों से जन्यत्व शक्ति का नियम करना जैसे नहीं बन सकता है, वैसे ही धानबीज से ही धान अंकुर कार्य उत्पन्न हुआ है, यह भी लौकिक प्रत्यक्ष से नहीं जाना जा सकता है।) उस धानबीज के होने पर ही धान अंकुर उत्पन्न होता है, इस अन्वयरूप हेतु से अनुमान प्रमाण द्वारा धान अंकुर में धानबीज का वह कार्यपना प्रसिद्ध है, ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि यह हेतु भी साध्य के समान असिद्ध होने से साध्यसम हेत्वाभास है। (धानबीज के होने पर ही धान अंकुर कार्य होता है, यही तो हमको 'साध्य' करना है और इसी को आप 'हेतु' बना रहे हैं) ऐसा कौन पुरुष है जो साध्य को ही हेतु द्वारा कथन करेगा। अस्वस्थ के अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं कर सकता हैं। भावार्थ- विचारशील मनुष्य असिद्ध को साध्य बनाते हैं और प्रसिद्ध को हेतु बनाते हैं। किन्तु जो आपे में नहीं है, अज्ञानी है, वे ही ऐसी अयुक्त बातों को कहते हैं। उस धानबीज के होने पर धान अंकुर का होना ही तो नियम से धानबीज का धान अंकुर में कार्यपना है। उससे भिन्न कोई उसकी कार्यता नहीं है। धानबीज जौ आदिक हैं कारण जिसके ऐसे धान के या जौ आदि के अंकुर के कार्यता सिद्ध हो ही जाती है। इस प्रकार किसी का कहना भी उस पहले के समान साध्यसम हेत्वाभास है तथा उक्त कथन में परस्पराश्रय दोष भी है। क्योंकि धानबीज गेहूँ, जौ आदि हैं कारण जिनके ऐसे धान अंकुर, गेहूँ अंकुर, जौ अंकुर हैं, इस प्रकार सिद्ध हो जाने पर तो धान अंकुर आदि की उन बीजों की कार्यता सिद्ध होगी और धान आदि बीजों की वह कार्यता जब-जब धान आदि अंकुरों में सिद्ध हो जावेगी तब ‘धान आदि अंकुरों के धान आदि बीज कारण हैं' यह कथन सिद्ध होगा। इस प्रकार अन्योन्याश्रय ‘दोषयुक्त है।

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