________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक - 296 दृश्यस्य वा रूपादेः परमार्थसत्त्वमुपयताभिप्रेतस्याप्यव्यभिचारिणस्तन प्रतिक्षेप्तव्यं, सर्वथा विशेषाभावात् / परमार्थसत्त्वे च स्वाभिप्रेतार्थस्य सुनयविषयस्य तत्संप्राप्त्यसंप्राप्ती वस्तुरूपे सिद्धे तद्धेतुकयोश्च प्रधानेतरभावयोः वस्तुसामर्थ्यसंभूततनुत्वं नासिद्धं यतस्तयोर्वास्तवत्वं न साधयेदिति। तत्र विवक्षा चाविवक्षा च न निर्विषया येन तद्वशादेकत्र वस्तुन्यनेककारकात्मकत्वं न व्यवतिष्ठेत / निरंशस्य च तत्त्वस्य सर्वथानुपपत्तितः।। नैकस्य बाध्यतेऽनेककारकत्वं कथंचन // 32 // नात्मादितत्त्वे नानाकारकात्मता वास्तवी तस्य निरंशत्वात्, कल्पनामात्रादेव तदुपपत्तेरिति न शंकनीयं, बहिरंतर्वा निरंशस्य सर्वथार्थक्रियाकारित्वायोगात् / परमाणुः कथमर्थक्रियाकारीति चेन्न, तस्यापि सांशत्वात् / न हि परमाणोरंश एव नास्ति द्वितीयाद्यंशाभावानिरन्वयत्ववचनात् / न च यथा परमाणुरेकप्रदेशमात्रस्तथात्मादिरपि शक्यो वक्तुं सकृन्नानादेशव्यापित्वविरोधात् / तस्य की संप्राप्ति और असंप्राप्ति के कारण से सिद्ध होने वाले) प्रधान (मुख्य) और अप्रधान (गौण) भाव के वस्तु सामर्थ्य संभूततनुत्व असिद्ध नहीं है, जिससे उन दोनों के वास्तविकता सिद्ध न हो- अर्थात् प्रधान और अप्रधान का कारण अभिप्रेतार्थ की संप्राप्ति एवं असंप्राप्ति वास्तविक है तो उनका कार्य प्रधान और अप्रधान भी परमार्थ सत् है (वास्तविक है) जब प्रधान और अप्रधान वास्तविक हैं तो उनको सिद्ध करने वाली विवक्षा और अविवक्षा भी निर्विषया (किसी का विषय नहीं करने वाली) नहीं है- जिससे उस विवक्षा-अविवक्षा के वश से (कारण से) एक ही वस्तु में अनेक कारकत्व नहीं रह सकता होअर्थात् गौण और मुख्य की अपेक्षा से एक ही वस्तु में छहों कारक सिद्ध हो सकते हैं, इसमें कोई विरोध नहीं है। अतः निरंश (अंश रहित) तत्त्व की सर्वथा अनुपपत्ति (अभाव) होने से कथंचित् एक ही वस्तु के अनेककारकत्व बाधित नहीं है।॥३२॥ (बौद्धों को) ऐसी शंका भी नहीं करनी चाहिए कि निरंश होने से आत्मादि तत्त्व में नानाकारकत्व वास्तविक नहीं है अपितु एक ही आत्मादि वस्तु में नानाकारकपना कल्पना मात्र से उत्पन्न होता है क्योंकि सर्वथा निरंश वस्तु के अंतरंग एवं बहिरंग दोनों ही कारणों से क्रियाकारित्व का अयोग है। प्रश्न- (बौद्ध) यदि निरंश वस्तु में क्रियाकारित्व का अयोग कहते हो तो निरंश परमाणु अर्थक्रिया को करने वाले कैसे हैं? उत्तर- ऐसा कहना युक्त नहीं है- क्योंकि परमाणु के भी अंश सहितता है। दो आदि अंश का अभाव होने से वा निरवयवत्व का कथन होने से परमाणु के सर्वथा निरंशत्व नहीं है और जैसे परमाणु एकदेश मात्र है वैसे आत्मा आदि द्रव्य भी एकप्रदेश मात्र है, ऐसा भी नहीं कह सकते क्योंकि एकप्रदेशी एक साथ नानादेशव्यापी नहीं हो सकता है, उसके एक साथ नानादेश-व्याप्तत्व का विरोध है।