Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 01
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 380
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक- 347 तत्संसर्गलक्षणसंसारस्यापक्षयोऽपि सिद्धस्तावता च तस्य दृष्टांतताप्रसिद्धरविवाद एव / तदेवमनुमितानुमानान्मिथ्यादर्शनादिनिमित्तत्वं भवस्य सिद्ध्यतीति न विपर्ययमात्रहेतुको विपर्ययावैराग्यहेतुको वा भवो विभाव्यते। तद्विपक्षस्य निर्वाणकारणस्य त्रयात्मता। प्रसिद्धैवमतो युक्ता सूत्रकारोपदेशना // 106 // मिथ्यादर्शनादीनां भवहेतूनां त्रयाणां प्रमाणत: स्थितानां निवृत्तिः प्रतिपक्षभूतानि सम्यग्दर्शनादीनि त्रीण्यपेक्षते अन्यतमापाये तदनुपपत्तेः; शक्तित्रयात्मकस्य वा भवहेतोरेकस्य विनिवर्तनं प्रतिपक्षभूतशक्तित्रयात्मकमेकमंतरेण नोपपद्यत इति युक्ता सूत्रकारस्य त्रयात्मकमोक्षमार्गोपदेशना / तत्र यदा संसारनिवृत्तिरेव मोक्षस्तदा कारणविरुद्धोपलब्धिरियं, नास्ति क्वचिजीवे संसारः परमसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रसद्भावादिति; यदा तु संसारनिवृत्तिकार्यं मोक्षस्तदा के उत्पन्न हो जाने पर कोई जीव विष नहीं खाता है और न अधिक भोजन करता है। अतः तत्त्वज्ञानी के जैसे इन उपद्रवों का क्षय हो जाता है, वैसे ही मिथ्याज्ञान का नाश होकर सत्यज्ञान के उत्पन्न होने पर निकृष्ट स्थानों में जन्म-मरण कर दुःख भोगना या सकल दुःखों के निदान उस सूक्ष्म स्थूल शरीर का संबंध हो जाने रूप संसार का ह्रास होना भी सिद्ध हो जाता हैं। उतने से ही हेतु और साध्य के आधार हो जाने के कारण उन विषभक्षण आदि को दृष्टान्तपना प्रसिद्ध हो जाने से किसी का विवाद नहीं है। इस प्रकार अनुमित किये गये अनुमान से संसार के कारण मिथ्यादर्शन आदिक ये तीन सिद्ध हो जाते हैं। अतः केवल विपर्ययज्ञान को या विपर्यय और अवैराग्य को हेतु मानकर उत्पन्न होने वाला संसार है, यह नहीं विचारना चाहिए। किंतु संसार के कारण मिथ्यादर्शन आदि तीन हैं। ऐसा जानना चाहिए। त्रिरूप मोक्षमार्ग का उपदेश युक्तियुक्त है . जब संसार-कारण तीन सिद्ध हैं तो उस संसार के प्रतिपक्षी मोक्ष के कारण को भी तीन स्वरूपपना उक्त प्रकार से प्रसिद्ध है। अतः तत्त्वार्थसूत्र को रचने वाले गृद्धपिच्छ आचार्य का मोक्ष के कारण तीन का उपदेश देना युक्तियों से युक्त है॥१०६॥ . संसार के कारण मिथ्यादर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीन की प्रमाणों से स्थिति हो चुकी है। इन तीनों की निवृत्ति होना अपने से प्रतिपक्षरूप तीन सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की अपेक्षा करती है। क्योंकि तीन प्रतिपक्षियों में से किसी एक के भी न होने पर मिथ्यादर्शन आदि तीनों की निवृत्ति होना बन नहीं सकता। अथवा, संसार के कारण मिथ्याभिनिवेश आदि तीन शक्ति स्वरूप एक विपर्यय की ठीक निवृत्ति होना (पक्ष) अपने विघातक स्वरूप सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीन शक्तिरूप एक रत्नत्रयात्मक आत्मद्रव्य के बिना नहीं बन सकता है। (साध्य) इस प्रकार दो अनुमानों से सूत्रकार का तीन-रूप मोक्षमार्ग का उपदेश देना युक्त है। . उस अनुमान के प्रकरण में जब संसार की निवृत्ति ही मोक्ष है, तब यह निषेध का साधक कारण विरुद्धोपलब्धिरूप हेतु है कि किसी विवक्षित एक जीव में संसार विद्यमान नहीं है क्योंकि उत्कृष्ट श्रेणी के * सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र वहाँ विद्यमान हैं।

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