________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 353 यथा त्रिविधे बंधहेतौ त्रिविधो मार्गस्तथा पंचविधे बंधकारणे पंचविधो मोक्षहेतुर्वक्तव्यः, त्रिभिर्मोक्षकारणैः पंचविधबंधकारणस्य निवर्तयितुमशक्तेः। अन्यथा त्रयाणां पंचानां वा बंधहेतूनामेकेनैव मोक्षहेतुना निवर्तनसिद्धेर्मोक्षकारणत्रैविध्यवचनमप्ययुक्तिकमनुषज्येतेति कश्चित् / तदेतदनुकूलं नः सामर्थ्यात् समुपागतम्। बंधप्रत्ययसूत्रस्य पांचध्यं मोक्षवर्त्मनः // 111 // 'सम्यग्दर्शनविरत्यप्रमादाकषायायोगा मोक्षहेतव': इति पंचविधबंधहेतूपदेशसामर्थ्याल्लभ्यत एव मोक्षहेतोः पंचविधत्वं, ततो न तदापादनं प्रतिकूलमस्माकं / सम्यग्ज्ञानमोक्षहेतोरसंग्रहः स्यादेवमिति चेन्न, तस्य सद्दर्शनेंतर्भावात् मिथ्याज्ञानस्य मिथ्यादर्शनेऽन्तर्भाववत् / तस्य तत्रानंतर्भावे वा षोढा मोक्षकारणं बंधकारणं चाभिमतमेव विरोधाभावादित्युच्यते;बंध के कारणों की भाँति मोक्ष के हेतु भी पाँच प्रकार के जैसे बंध के कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के भेद से तीन प्रकार हो जाने पर मोक्ष का मार्ग सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप तीन प्रकार कहा है, वैसे ही बंध के कारण पाँच प्रकार के सिद्ध कर देने पर मोक्ष के हेतु भी पाँच प्रकार के कहने चाहिए। क्योंकि मोक्ष के तीन कारणों से बंध के पाँच प्रकार-कारणों की निवृत्ति हो नहीं सकती। अन्यथा (ऐसा न मानकर तीन से ही पाँचों की निवृत्ति होना मान लेने पर) तीनों या पाँचों बंध के कारणों की मोक्ष के एक ही तत्त्वज्ञानस्वरूप कारण से निवृत्ति सिद्ध हो जावेगी। फिर मोक्ष के कारणों को तीन प्रकार से कहने का भी अयुक्त प्रसंग आयेगा, इस प्रकार कोई शंकाकार कहता है। आचार्य उसका उत्तर देते हैं. इस प्रकार यह शंका तो हमारे अनुकूल है। अतः बंध के पाँच कारणों को कहने वाले सूत्र की सामर्थ्य से ही यह बात प्राप्त हो जाती है कि मोक्ष का मार्ग भी पाँच प्रकार का है॥१११॥ . . बंध के पाँच प्रकार हेतुओं के उपदेश की सामर्थ्य से मोक्ष के कारण को पाँच प्रकारपना इसी न्याय से प्राप्त हो ही जाता है कि सम्यग्दर्शन, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग ये पाँच मोक्ष के कारण हैं। (इन एक-एक कारण से बंध के एक-एक कारण की निवृत्ति हो जाती है।) अतः शंकाकार का वह आपादन करना हमें प्रतिकूल नहीं है, प्रत्युत इष्ट है। ___इस प्रकार मोक्ष के कारणों को पाँच प्रकार का मानने पर भी मोक्ष के कारणों में सम्यग्ज्ञान का संग्रह नहीं होता है। ऐसा कहना भी उचित नहीं है। क्योंकि सम्यग्दर्शन में उस सम्यग्ज्ञान का अन्तर्भाव हो जाता है, मिथ्याज्ञान का जैसे मिथ्यादर्शन में अन्तर्भाव हो जाता है। अथवा यदि स्वतन्त्र गुण होने के कारण उस सम्यग्दर्शन में उस सम्यग्ज्ञान का अन्तर्भाव नहीं करना चाहते हो तो मोक्ष के कारण छह प्रकार के हो जायेंगे और इसी प्रकार मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञान विभावों के स्वतन्त्र होने पर बंध का कारण भी छह प्रकार का ही समझा जायेगा। क्योंकि ग्रन्थकारका किसी प्रकार का विरोध न होने से तीन कारण के समान पाँच, छह प्रकार का भी मोक्षकारण इष्ट है। इसी को कहते