________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-३०१ प्रथमसम्यग्दर्शनस्य। न च तथा तस्य मिथ्यात्वप्रसंगः सम्यग्ज्ञानस्यापि मिथ्याज्ञानपूर्वकस्य मिथ्यात्वप्रसक्तेः / सत्यज्ञानजननसमर्थान्मिथ्याज्ञानात्सत्यज्ञानत्वेनोपचर्यमाणादुत्पन्नं सत्यज्ञानं न मिथ्यात्वं प्रतिपद्यते मिथ्यात्वकारणादृष्टाभावादिति चेत्, सम्यग्दर्शनमपि तादृशान्मिथ्याज्ञानादुपजातं कथं मिथ्या प्रसज्यते तत्कारणस्य दर्शनमोहोदयस्याभावात् / . सत्यज्ञानं मिथ्याज्ञानानंतरं न भवति तस्य धर्मविशेषानंतरभावित्वादिति चेत्, सम्यग्दर्शनमपि न मिथ्याज्ञानानंतरभावि तस्याधर्मविशेषाभावानन्तरभावित्वोपगमात् / मिथ्याज्ञानानन्तरभावित्वाभावे च सत्यज्ञानस्य सत्यज्ञानानन्तरभावित्वं सत्यासत्यज्ञानपूर्वकत्वं वा स्यात्? प्रथमकल्पनायां सत्यज्ञानस्यानादित्वप्रसंगो मिथ्याज्ञानसंतानस्य चानंतत्वप्रसक्तिरिति प्रतीतिविरुद्धं सत्येतरज्ञानपौर्वापर्यदर्शननिराकरणमायातं। द्वितीयकल्पनायां तु सत्यज्ञानोत्पत्ते: पूर्वं सकलज्ञानशून्यस्यात्मनोऽनात्मत्वानुषंगो दुर्निवारः तस्योपयोगलक्षणत्वेन साधनात्।। यदि कहो कि सत्यज्ञानजनन सामर्थ्य वाले होने से सत्यज्ञान से उपचर्यमाण (सत्यज्ञान का जिसमें उपचार किया गया है) मिथ्याज्ञान से उत्पन्न सत्य ज्ञान मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होता है, मिथ्यात्व करणों के अदृष्ट अभाव होने से, तो मिथ्यादर्शन के कारणभूत मोहनीय कर्म के उदय का अभाव होने से, तथा सत्यज्ञानजनन सामर्थ्य वाले सत्यज्ञान से उपचर्यमाण मिथ्याज्ञान से उत्पन्न सम्यग्दर्शन भी मिथ्या कैसे हो सकता है? यदि कहा जाय कि “सम्यग्ज्ञान के धर्म विशेषान्तर भावित्व (विशेष धर्मान्तरों से उत्पत्ति) होने से सम्यग्ज्ञान मिथ्याज्ञान के अनन्तर (मिथ्याज्ञान के अभाव से) नहीं होता है" तो सम्यग्दर्शन भी मिथ्याज्ञान के अनन्तर भावी नहीं है, ऐसा भी हम कह सकते हैं क्योंकि अधर्म विशेष (अश्रद्धान विशेष) के अभाव में ही सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति स्वीकार की गई है। ___अथवा- मिथ्याज्ञानानन्तर भावित्व के (मिथ्याज्ञान के नाश होने के) अभाव में सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति मानते हो या सत्यासत्यज्ञान पूर्वकत्व सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति मानते हो? यदि प्रथम कल्पना (सत्य ज्ञान के सत्यज्ञानानन्तर से सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति होती है इस कल्पना) को स्वीकार करते हैं तो सत्यज्ञान के अनादित्व का प्रसंग आयेगा अर्थात् सत्यज्ञान के पहले भी सत्यज्ञान का अस्तित्व था तथा मिथ्याज्ञान की संतति के अनन्त का प्रसंग आयेगा- क्योंकि मिथ्यात्व का अभाव तो सम्यग्ज्ञान से हुआ नहीं। परन्तु सम्यग्ज्ञान की अनादिता और मिथ्याज्ञान की अनन्तता प्रतीतिविरुद्ध है। तथा सत्येतर ज्ञान के पूर्व परदर्शन का निराकरण होता है अर्थात् सत्य पूर्ववर्ती है और असत्य ज्ञान उत्तरवर्ती है, इस बात का निराकरण हो जाता है। द्वितीय विकल्प मानने पर (सत्यासत्यज्ञान पूर्वक सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति होती है ऐसा मानने पर) सत्यज्ञान की उत्पत्ति के पूर्व सकल ज्ञान से शून्य होते जाने से आत्मा के अनात्मा का अनुषंग दुर्निवार होगा- क्योंकि आत्मा का लक्षण उपयोग है और उपयोग रूप ज्ञान का अभाव होने से आत्मा का भी अभाव होगा।