________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 228 सदात्मानवबोधादिस्वभावश्चेतनत्वतः। / सुषुप्तावस्थवन्नायं हेतुप्प्यात्मवादिनः / / 230 / / स्वरूपासिद्धो हि हेतुरयं व्यापिनमात्मानं वदतः कुतः जीवो ह्यचेतनः काये जीवत्वाबाह्यदेशवत् / वक्तुमेवं समर्थोऽन्यः किं न स्याजडजीववाक् // 231 / / .कायादहिरचेतनत्वेन व्याप्तस्य जीवत्वस्य सिद्धेः कायेऽप्यचेतनत्वसिद्धिरिति नानवबोधादिस्वभावत्वे साध्ये चेतनत्वं साधनमसिद्धस्यासाधनत्वात्।। सांख्य कहता हैआत्मा चेतन होने से ज्ञान सुख स्वभाव वाला है सदा ही आत्मा अज्ञान स्वभाव और असुख स्वभाव वाला है, क्योंकि चेतन है। जो-जो चेतन स्वभाव वाला है, वह अज्ञान स्वभाव और असुख स्वभाव वाला है। जैसे गाढ़ निद्रा में सुप्त मानव ज्ञान और सुख से रहित अज्ञानी होता है; उसी प्रकार जागृत अवस्था में भी आत्मा अज्ञान और असुख स्वभाव वाला है। जैनाचार्य कहते हैं कि आत्मा को व्यापक मानने वाले सांख्य द्वारा कथित चेतन हेतु असिद्ध हेत्वाभास है॥२३०॥ अर्थात् चेतन होने से आत्मा अज्ञ है। इस प्रकार आत्मा को स्वभाव से अज्ञ सिद्ध करने के लिए दिया गया चेतनत्व हेतु असिद्ध हेत्वाभास है। तथा आत्मा को व्यापी कहने वाले सांख्य का यह चेतनत्व हेतु स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है। प्रश्न- स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास कैसे है? _ उत्तर- कोई इस प्रकार भी कह सकते हैं कि शरीर में स्थित आत्मा निश्चय से अचेतन है, जीवत्व होने से, जो-जो जीव होते हैं वे अचेतन होते हैं जैसे कि शरीर के बाह्य देश में स्थित जीव अचेतन हैं। इस हेतु के द्वारा जीव को सर्वथा जड़ होने का सिद्धान्त वचन क्यों नहीं होगा अर्थात् शरीर में भी जीव अचेतन हो जायेगा॥२३१ / / सम्पूर्ण देश-देशान्तर में व्याप्त सम्पूर्ण मूर्त वा अचेतन द्रव्यों के साथ आत्मा संयोग रखता है। इसलिए जैसे शरीर के बाह्य सर्वत्र व्याप्त जीव के अचेतन की सिद्धि होने से काय में भी अचेतनत्व की सिद्धि हो जायेगी। अर्थात् वह जीवत्व हेतु विवादग्रस्त शरीर में स्थित आत्मा में ही देखा जाता है इसलिए अचेतनत्व साध्य को सिद्ध कर देता है। अत: आत्मा के ज्ञान, सुख आदि स्वभाव रहितता सिद्ध करने के लिए दिया गया चेतनत्व हेतु असिद्ध हेत्वाभास है, क्योंकि शरीर से बाह्य आत्मा के अचेतन होने से चेतनत्व हेतु असिद्ध हेत्वाभास, स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है।