________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 292 प्रधानेतरताभ्यां विवक्षेतरयोाप्तत्वात् पररूपादिभिरिव स्वरूपादिभिरप्यसतस्तदभावात्तदभावसिद्धिः। सर्वथैव सतोऽनेन तदभावो निवेदितः। एकरूपस्य भावस्य रूपद्वयविरोधतः // 28 // न हि सदेकान्ते प्रधानेतररूपे स्तः। कल्पिते स्त एवेति चेन्न, कल्पितेतररूपद्वयस्य सत्ताद्वैतविरोधिनः प्रसंगात् / कल्पितम्य रूपस्यासत्त्वादकल्पितस्यैव सत्त्वान्न रूपद्वयमिति चेत्तीसतां प्रधानेतररूपे विवक्षेतरयोर्विषयतामास्कन्दत इत्यायातं, तच्च प्रतिक्षिप्तं / स्याद्वादिनां तु नायं दोषः / चित्रैकरूपे वस्तुनि प्रधानेतररूपद्वयस्य स्वरूपेण सतः पररूपेणासतो विवक्षेतरयोर्विषयत्वाविरोधात्। प्रधान और गौण के साथ विवक्षा और अविवक्षा की व्याप्ति है- अर्थात् प्रधान और गौण के होने पर ही विवक्षा और अविवक्षा की सिद्धि होती है। परस्वरूप के समान स्वस्वरूप के भी असत् (अभाव) होने से गौण-मुख्य का अभाव है और गौण-मुख्य के अभाव में विवक्षा और अविवक्षा का भी अभाव सिद्ध होता है। (विवक्षा और अविवक्षा व्याप्य है और प्रधानता और गौणता धर्म व्यापक इसी हेतु से पदार्थ के सर्वथा (एकान्त से) सत् के मुख्य और गौण के अभाव का वर्णन किया है- अर्थात् सर्वथा (सभी पदार्थ की अपेक्षा सत्) के प्रधान गौण का अभाव होने से विवक्षा एवं अविवक्षा नहीं बन सकती। क्योंकि एक रूप पदार्थ के दो रूप का विरोध है॥२८॥ __ ‘पदार्थ अस्ति ही है' इस एकान्त सत् में भी प्रधान और अप्रधान का वर्णन नहीं हो सकता तथा प्रधान और गौण तो कल्पित हैं ऐसा भी नहीं कह सकते- क्योंकि सत्ताद्वैत (सत्ता को ही मानने वालों) का विरोधी कल्पित और अकल्पित रूप द्वैत का प्रसंग आता है। यदि कहो कि कल्पित रूप के असत्त्व और अकल्पित के ही सत्त्व होने से दो रूप (सत्ता द्वैत) का प्रसंग नहीं आयेगा, तो असत् (नास्ति रूप) भी प्रधान और अप्रधान रूप में विवक्षा और अविवक्षा के विषय को प्राप्त होता है, यह सिद्ध हो ही गया। इन सब का खण्डन भी पूर्व में कर दिया गया है। ये सर्वदोष स्याद्वाद मत (जैनमत) में नहीं आ सकते क्योंकि अनेक धर्मात्मक वस्तु में अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल की अपेक्षा सत् और पर-द्रव्य, क्षेत्र, काल की अपेक्षा असत् इस मुख्य गौण रूप दोनों की विवक्षा और अविवक्षा में विषयत्व का अविरोध है। अर्थात् एक ही वस्तु स्वरूप की अपेक्षा अस्ति है और पर-रूप की अपेक्षा नास्ति है अत: एक को गौण और दूसरे को मुख्य की विवक्षा करके कथन करने में एक की विवक्षा दूसरे की अविवक्षा सिद्ध हो ही जाती है।