________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 287 * तदेवाबाधितज्ञानमारूढं शक्तितद्वतोः / सर्वथा भेदमाहंति प्रतिद्रव्यमनेकधा // 21 // कथंचित्तादात्म्यमेव समवायिनामेकममूर्त सर्वगतमिहेदमिति प्रत्ययनिमित्तं समवायोऽर्थभेदाभावादिति मामस्त, तस्य प्रतिद्रव्यमनेकप्रकारत्वात्, तथैवाबाधितज्ञानारूढत्वात् / मूर्तिमद्रव्यपर्यायतादात्म्यं हि मूर्तिमज्जायते नामूर्त, अमूर्त्तद्रव्यपर्यायतादात्म्यं पुनरमूर्तमेव तथा सर्वगतद्रव्यपर्यायतादात्म्यं सर्वगतं, असर्वगतद्रव्यपर्यायतादात्म्यं पुनरसर्वगतमेव, तथा चेतनेतरद्रव्यपर्यायतादात्म्यं चेतनेतररूपमित्यनेकधा तत्सिद्धं शक्तितद्वतोः सर्वथा भेदमाहन्त्येव / ततोऽर्थग्रहणाकारा शक्तिर्ज्ञानमिहात्मनः। करणत्वेन निर्दिष्टा न विरुद्धा कथञ्चन // 22 // न ह्यन्तरंगबहिरंगार्थग्रहणरूपाऽऽत्मनो ज्ञानशक्तिः करणत्वेन कथंचिनिर्दिश्यमाना विरुध्यते, सर्वथा शक्तितद्वतोभ॑दस्य प्रतिहननात् / ननु च ज्ञानशक्तिर्यदि प्रत्यक्षा तदा सकलपदार्थशक्तेः तादात्म्य सम्बन्ध . तथा यही अबाधित आरूढ़ ज्ञान (तादात्म्य सम्बन्ध का ज्ञान) शक्ति और शक्तिमान के सर्वथा भेद का खण्डन करता है और प्रत्येक द्रव्य में वह कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध न्यारा-न्यारा होकर अनेक प्रकार का है, इसको सिद्ध करता हैं॥२१॥ . वह कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध ही समवायियों (गुण-गुणी) का एक अमूर्तिक सर्वगत 'इसमें यह है! इस प्रकार की बुद्धि का निमित्त समवाय है- क्योंकि समवाय सम्बन्ध और तादात्म्य सम्बन्ध में अर्थभेद का अभाव है अतः ये दोनों एकार्थवाची हैं, ऐसा नहीं मानना चाहिए क्योंकि अबाधित ज्ञान में आरूढ़ होने से तथा प्रत्येक द्रव्य के प्रति अनेक प्रकार का होने से वह समवाय एक, अमूर्तिक और सर्वगत नहीं है। उस कथंचित्तादात्म्य के अनेकपना और अबाधित ज्ञानरूढ़ की सिद्धि करते हैं मूर्तिमान द्रव्य पर्याय का तादात्म्य मूर्तिमान होता है अमूर्त नहीं। अमूर्त द्रव्य और पर्याय का तादात्म्य अमूर्त होता है। सर्वगत द्रव्य और पर्यायों का तादात्म्य सर्वगत है। असर्वगत द्रव्य पर्यायों का तादात्म्य असर्वगत ही है, चेतन और अचेतन द्रव्य पर्याय का तादात्म्य चेतन-अचेतन रूप है, इस प्रकार अनेक प्रकार का तादात्म्य सिद्ध है और यह कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध ही शक्ति और शक्तिमान (गुण-गुणी) में सर्वथा भेद के भाव का खण्डन करता है। . इसी तादात्म्य सम्बन्ध से आत्मा की विकल्प स्वरूप अर्थग्रहण के संचेतन को धारण करने वाली शक्ति ही यहाँ ज्ञान मानी गयी है और वही शक्ति ज्ञप्ति क्रिया का करण कही गयी है, ऐसा कहना कथंचित् विरुद्ध भी नहीं है अर्थात् ज्ञान का और शक्ति का अभेद है तो प्रमाणज्ञान के समान लब्धिरूप शक्ति भी प्रमिति का करण बन जाती है।॥२२॥ कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध से शक्ति और शक्तिमान में सर्वथा भेद का निषेध कर देने पर करणरूप से निर्दिष्ट अंतरंग बहिरंग अर्थ (पदार्थ) को ग्रहण करने वाली ज्ञानशक्ति आत्मा की है- ऐसा कहना कथंचित् विरुद्ध भी नहीं है। (ज्ञानशक्ति आत्मा से कथंचित् अभिन्न है) 1. जैसे पुद्गल और रूप रस का क्योंकि पुद्गल भी मूर्तिमान है और उसकी गुण और पर्यायें भी मूर्तिमान हैं। अमूर्त जीव, धर्म, अधर्म आदि के स्वकीय-स्वकीय गुण-पर्यायों का तादात्म्य सम्बन्ध अमूर्तिक है, आकाशादि सर्वगत पदार्थों का तादात्म्य सर्वगत है।