________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१८० तद्वासना कुत इति चेत्, पूर्वतद्वासनातः, सापि पूर्वस्ववासनाबलादित्यनादित्वाद्वासनासंततेरयुक्तः पर्यनुयोगः। कथमन्यथा बहिरर्थेऽपि न संभवेत्? तत्र कार्यकारणभावस्यानादित्वादपर्यनुयोगे पूर्वापरवासनानामपि तत एवापर्यनुयोगोस्तु। कार्यकारणभावस्यानादित्वं हि यथा बहिस्तांतरमपीति न विशेषः केवलं बहिरर्थोनर्थः परिहतो भवेत् अशक्यप्रतिष्ठत्वात्तस्येति ज्ञानवादिनः / तेषामपि नेयं प्रत्यभिज्ञा पूर्वस्ववासनाप्रभवा वक्तुं युक्तान्वयिनः पुरुषस्याभावात्, संतानांतरवासनातोऽपि तत्प्रभवप्रसंगात्तन्नानात्वाविशेषात् / संतानैकत्वसंसिद्धिर्नियमात्स कुतो मतः। प्रत्यासत्तेर्न संतानभेदेप्यस्या: समीक्षणात् // 181 // पिता से होती है, पिता की उत्पत्ति किससे हुई? उसके पूर्व पिता से' इस प्रकार बहिरंग पदार्थ में प्रश्नमाला उठती रहेगी, इससे अनवस्था दोष आयेगा। इसमें प्रश्न होने पर पूर्व वासना में भी यही प्रश्न और उत्तर रहेगा। अत: जैसे बहिरंग पदार्थों में कार्य-कारण भाव अनादि काल से चला आ रहा है, उसी प्रकार अंतरंग के विज्ञान पदार्थ और वासनाओं में भी कार्य-कारण भाव अनादि काल से चला आ रहा है। इसमें कोई विशेषता नहीं है। केवल इतना अन्तर अवश्य है कि बहिरंग पदार्थ वास्तविक नहीं हैं, अप्रयोजनीभूत हैं अतः उनका परित्याग कर देते हैं। क्योंकि उन बहिरंग पदार्थों की प्रमाण के द्वारा व्यवस्था करना भी शक्य नहीं है। इस प्रकार शुद्ध संवेदनावादी कहता है। अब जैनाचार्य उस शुद्ध संवेदनावादी का खण्डन करते हुए कहते हैं - 'यह वही है' इस प्रकार की प्रत्यभिज्ञा स्वकीय पूर्व वासना से उत्पन्न हुई है, ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि पूर्व में देखने वाले और वही' इसका स्मरण करने वाले पुरुष का सर्वथा अभाव हो जाने से यह वही है' इस ज्ञान के आधारभूत पुरुष के न रहने से आधेयभूत वासना किसमें उत्पन्न होगी? यदि आधारभूत वस्तु के अभाव में भी वासना उत्पन्न हो सकती है, तो यज्ञदत्त ने अकलंक को देखा था, धर्मदत्त को वासना उत्पन्न हो जानी चाहिए कि 'यह वही अकलंक है'। इस प्रकार संतानान्तर में भी वासना के कारण प्रत्यभिज्ञान होने का प्रसंग आयेगा। क्योंकि नानात्व में कोई अन्तर नहीं है। 'संतान प्रवाह रूप से चली आ रही है' इस संतान में एकत्व की सिद्धि का नियम भी किस प्रमाण से सिद्ध माना गया है। अर्थात् किस प्रमाण के आधार पर कह सकते हैं कि एक संतान अनादि काल से धाराप्रवाह रूप से चली आ रही है? कालप्रत्यासत्ति और देशप्रत्यासत्ति से भी एक संतान की सिद्धि नहीं होती है। क्योंकि, भिन्न संतान में भी इसके कालप्रत्यासत्ति और देश (क्षेत्र) प्रत्यासत्ति देखी जाती है अर्थात् यज्ञदत्त और देवदत्त की क्षेत्रप्रत्यासत्ति और कालप्रत्यासत्ति है। दोनों एक स्थान में तथा