________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 164 यद्यद्विषयतया प्रतीयते तत्तद्विषयमिति व्यवस्थायां वर्तमानार्थाकारविषयतया समीक्ष्यमाणं प्रत्यक्षं तद्विषयं, पूर्वापरविवर्तवत्यैकद्रव्यविषयतया तु प्रतीयमानं प्रत्यभिज्ञानं तद्विषयमिति को नेच्छेत् / नन्वनुभूतानुभूयमानपरिणामवृत्तेरेकत्वस्य प्रत्यभिज्ञानविषयत्वे ऽतीतानुभूताखिलपरिणामवर्तिनोऽनागतपरिणामवर्तिनश तद्विषयत्वप्रसक्तिः, भिन्नकालपरिणामवर्तित्वाविशेषात्, अन्यथानुभूतानुभूयमानपरिणामवर्तिनोऽपि तदविषयत्वापत्तेरिति चेत् / तर्हि सांप्रतिकपर्यायस्य प्रत्यक्षविषयत्वे कस्यचित्सकलदेशवर्तिनोऽप्यध्यक्षविषयता स्यादन्यथेष्टस्यापि तदभावः, सांप्रतिकत्वाविशेषात् / तदविशेषेऽपि योग्यताविशेषात् सांप्रतिकाकारस्य कस्यचिदेवाध्यक्षविषयत्वं न सर्वस्येति चेत्तर्हि जो ज्ञान जिस पदार्थ को विषय करता हुआ प्रतीत होता है- वह ज्ञान उस पदार्थ का विषय करने वाला है। अथवा वह पदार्थ उस ज्ञान का विषय है। ऐसी व्यवस्था होने पर वर्तमान अर्थ के आकार को विषय रूप से देखता हुआ (ग्रहण करता हुआ) वह प्रत्यक्ष (सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष) ज्ञान विषय करता हुआ कहलाता है। अतः प्रत्यक्ष ज्ञान विषयी और वर्तमान कालीन पदार्थ प्रत्यक्षज्ञान के विषय कहलाते हैं। उसी प्रकार पूर्वोत्तरवर्ती पर्यायों में स्थित द्रव्य का एकत्व रूप से विषय करने वाला प्रत्यभिज्ञान प्रमाण प्रतीत हो रहा है- इस बात को कौन इष्ट नहीं करेगा- अर्थात् जैसे प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय वर्तमानकालीन पर्याय युक्त पदार्थ है, उसको जानने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान प्रमाणभूत है, उसी प्रकार वर्तमानकालीन और भूतकालीन पदार्थों में एकत्व का ज्ञान कराने वाला प्रत्यभिज्ञान प्रमाणभूत क्यों नहीं है? प्रत्यक्षज्ञान के समान प्रत्यभिज्ञान भी प्रमाणभूत है। ___शंका- अनुभूत (जिसका भूतकाल में अनुभव कर चुके हैं), अनुभूयमान (जिसका अनुभव वर्तमान में हो रहा है) परिणामों में रहने वाले एकत्व को प्रत्यभिज्ञान का विषय मानने पर अतीत में अनुभव किये गये सम्पूर्ण परिणामों में रहने वाले तथा सभी भविष्य परिणामों में स्हने वाले अनेक एकत्वों को भी प्रत्यभिज्ञान के विषयत्व का प्रसंग आयेगा। क्योंकि भूतकाल और भविष्यत्काल दोनों में ही भिन्नकालवी की अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है। जैसे वर्तमान काल में एकत्व है वैसे भविष्यत्काल में वर्त्तने वाले ज्ञान में भी एकत्व है। दोनों में कोई विशेषता नहीं है। अन्यथा (यदि भविष्यत्काल में रहने वाले एकत्व को प्रत्यभिज्ञान का विषय नहीं मानेंगे तो) अनुभूत और अनुभूयमान पर्यायों में रहने वाला एकत्व भी प्रत्यभिज्ञान का विषय नहीं होगा। समाधान- इस प्रकार बौद्ध के कहने पर जैनाचार्य उत्तर देते हैं कि इस प्रकार मानने पर तो वर्तमानकालीन पर्याय को अल्पज्ञ के प्रत्यक्ष का विषय करने पर सम्पूर्ण देशों में रहने वाली वर्तमानकालीन पर्यायें भी किसी भी साधारण मनुष्य के प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय क्यों नहीं होंगी। अन्यथा (यदि सर्वदेशस्थित पदार्थों की वर्तमानकालीन पर्याय को साधारण मानव प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा नहीं जानता है ऐसे मानोगे तो) बौद्धों के द्वारा इष्ट किया गया प्रत्यक्ष भी वर्तमानकालीन पर्याय को नहीं जान सकेगा। इस प्रकार वर्तमानकालीन पर्यायों को जानने का भी अभाव होगा। क्योंकि वर्तमान काल की अपेक्षा दोनों में कोई अन्तर (विशेषता) नहीं है।