________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 117 मया प्रस्तुतातिक्रमेणान्यदुक्तमिति संप्रत्यय: स्यात् / तथा च कथमतीतविवक्षापूर्वकत्वे सुगतवचनस्य गोत्रस्खलनमुदाहरणं येन विवक्षामंतरेणैव सुगतवाचो न प्रवर्तेरन् / सुषुप्तवचोवत् प्रकारांतरासंभवात् / न हि सुषुप्तस्य सुषुप्तदशायां विवक्षासंवेदनमस्ति तदभावप्रसंगात् / पशादनुमानांतरविवक्षासंवेदनमिति चेत् / न / लिंगाभावात् / वचनादिलिंगमिति चेत्, सुषुप्तवचनादिर्जाग्रद्वचनादिर्वा? प्रथमपक्षे व्याप्त्यसिद्धिः; स्वतः परतो वा सुषुप्तवचनादेविवक्षापूर्वकत्वेन प्रतिपत्तुमशक्तेः / जाग्रद्वचनादिस्तु उत्पन्न हो चुकी है, तभी तो कार्य हुआ।) यह सिद्ध होने पर अतीत (भूतकालीन) इच्छा पूर्वकत्व होने पर सुगत के वचन के गोत्रस्खलन का उदाहरण कैसे घटित हो सकता है? जिससे कि विवक्षा के बिना भी सुगत के वचन प्रवृत्त नहीं हो सकेंगे अर्थात् जैसे सुप्त पुरुष के वचन बिना इच्छा के निकलते हैं, उसी प्रकार बिना इच्छा के सुगत के वचन भी प्रवृत्त होते हैं। ऐसा मान लेना चाहिए। अन्य कोई प्रकार सम्भव नहीं है। सुप्तावस्था में विवक्षा का संवेदन नहीं - सुप्त पुरुष के सुप्त अवस्था में विवक्षा का संवेदन भी नहीं है। जब इच्छा होती है तो इच्छा का संवेदन अवश्य होता है। अतः संवेदन का अभाव होने से स्वप्नदशा में बोलने की इच्छा का अभाव है अर्थात् इच्छा का वेदन करना जाग्रत अवस्था का काम है। : शयन करके उठने के पश्चात् दूसरे अनुमानों से बोलने की इच्छा का संवेदन होता है, ऐसा मानना उचित नहीं है, क्योंकि सुप्त अवस्था में होने वाली जीव की वचनप्रवृत्ति को अनुमान प्रमाण से इच्छापूर्वकपना सिद्ध करने वाले हेतु का अभाव है। यदि कहते हो कि सुप्तावस्था में वचन की प्रवृत्ति ही इच्छा के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला हेतु है, तो जैनाचार्य कहते हैं कि सुप्तावस्था के वचन आदि इच्छा के द्योतक हेतु हैं कि जाग्रत अवस्था के वचनादि इच्छा के प्रकाशक हैं? प्रथम पक्ष को स्वीकार करने पर व्याप्ति की सिद्धि नहीं है। क्योंकि सुप्त पुरुष के वचन आदिक इच्छापूर्वक ही होते हैं, इस व्याप्ति को स्वतः या परतः (दूसरे के द्वारा) समझना (जानना) शक्य नहीं है। अर्थात् सुप्त पुरुष उस व्याप्ति को कैसे ग्रहण करेगा, वह तो गाढ़ निद्रा में अचेत है। तथा जाग्रत पुरुष भी सुप्त पुरुष के वचन की प्रवृत्ति इच्छापूर्वक है, यह कैसे जान सकता है अर्थात् नहीं जान सकता। द्वितीय पक्ष 'जागृत अवस्था के वचन और चेष्टा से, सोये हुए पुरुष के वचन भी इच्छापूर्वक होते हैं, यह सिद्ध हो जाता है।' बौद्धों के द्वारा कथित यह हेतु भी साध्य (सुप्त पुरुष के वचन इच्छापूर्वक होते हैं) का गमक (ज्ञान कराने वाला) नहीं है। क्योंकि जागृत अवस्था का वचन रूप हेतु सुप्तावस्था में बोलने की इच्छा सिद्ध करने में समर्थ नहीं है।