________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१२२ पीताकारशायमिति विवेचनं किं न प्रतीतं? चित्रप्रतिभासकाले तन्न प्रतीयत एव पश्चात्तु नीलाद्याभासानि ज्ञानान्तराण्यविद्योदयाद्विवेकेन प्रतीयंत इति चेत् / तर्हि मणिराशिप्रतिभासकाले पद्मरागादिविवेचनं न प्रतीयत एव, पशात्तु तत्प्रतीतिरविद्योदयादिति शक्यं वक्तुं / मणिराशेर्देशभेदेन विभजनं विवेचनमिति चेत् / भिन्नज्ञानसंतानराशेः समं। एकज्ञानाकारेषु तदभाव इति चेत् / एकमण्याकारेष्वपि। मणेरेकस्य खंडने तदाकारेषु तदस्तीति चेत् / ज्ञानस्यैकस्य खंडने समान। पराण्येव ज्ञानानि तत्खंडने तथेति चेत् / पराण्येव मणिखंडद्रव्याणि मणिखंडने तानीति समानम् / नन्वेवं विचित्रज्ञानं विवेचयनर्थे पततीति तदविवेचनमेवेति चेत् / तर्हि एकत्वपरिणत-द्रव्याकारानेवं चित्रप्रतिभास काल में नीलादि का पृथक्-पृथक् प्रतिभास नहीं होता है, अपितु पश्चात् मिथ्यावासनाजन्य अविद्या के उदय से नीलादि पृथक् पृथक् अवभासित ज्ञानान्तरों का पृथक्त्व प्रतीत होता है। इस प्रकार बौद्धों के कहने पर जैनाचार्य कहते हैं कि तब तो "मणिराशि के प्रतिभासकाल में यह पद्मरागमणि है, यह चन्द्रकान्तमणि है, इस प्रकार विवेचन प्रतीत नहीं होता है अपितु पश्चात् अविद्या के कारण पृथक्-पृथक् प्रतीत होता है" ऐसा हम भी कह सकते हैं। ___ यदि कहो कि मणिराशि के देशभेद के विभाजन से विवेचन (पृथक्त्व) है? तब तो हम (जैनाचार्य) भी कह सकते हैं कि भिन्न ज्ञान सन्तान समुदाय की अपेक्षा स्वलक्षण ज्ञान में देशभेद से पृथक्त्व हो सकता है। अर्थात् जिनदत्त के स्वलक्षण निर्विकल्प ज्ञान का देश भिन्न है और देवदत्त का भिन्न है। अतः देश विवेचन की अपेक्षा भी बाह्य पदार्थ में और अंतरंग पदार्थ में समानता ही है। यदि कहो कि एक ज्ञान के आकारों में तो भेद का अभाव है तो जैन भी कहते हैं कि एक मणि के आकारों में भी पृथक् भाव नहीं है। (परस्पर सन्निधान होने पर निमित्त नैमित्तिक भाव से एक मणि की भी इन्द्रधनुष के समान अनेक दीप्तियाँ हो जाती हैं). एक मणि के टुकड़े करने पर उसके अनेक आकारों की प्रतीति होती है? ऐसा कहने पर तो हम भी कह सकते हैं कि एक चित्रज्ञान के खण्ड करने पर 'यह नीलाकार है' और 'यह पीताकार है' यह भेद भी किया जा सकता है। अतः मणि का दृष्टान्त समान ही है। यदि कहो कि चित्रज्ञान का खण्ड करने पर वैसे ही दूसरे अनेक ज्ञान उत्पन्न होते हैं? तो हम भी कह सकते हैं कि मणि के खण्ड करने पर भी वे भिन्न-भिन्न मणिद्रव्य के खण्ड दूसरे-दूसरे ही बन गये हैं इस कथन में भी दोनों में समानता है। शंका- यदि इस प्रकार विचित्रज्ञान को पृथक् करते हैं तो वह खण्ड करना ज्ञान के विषयभूत पदार्थों में ही है, चित्रज्ञान के आकारों में भेदकरण नहीं है। उत्तर- इस प्रकार तो मणि के अवयवों से एकत्वरूप बन्ध को प्राप्त मणिद्रव्य के आकारों का विवेचन करना मणिखण्ड रूप नाना द्रव्यों के आकारों में होगा-एक मणि के उन आकारों में भेदकरण