________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 93 * एतेनैवेश्वरः श्रेयःपथप्रख्यापनेऽप्रभुः / व्याख्यातोऽचेतनो ह्येष ज्ञानादर्थांतरत्वतः॥६६॥ नेश्वरः श्रेयोमार्गोपदेशी स्वयमचेतनत्वादाकाशवत् / स्वयमचेतनोऽसौ ज्ञानादर्थान्तरत्वात् तद्वत् / नात्राश्रयासिद्धो हेतुरीश्वरस्य पुरुषविशेषस्य स्याद्वादिभिरभिप्रेतत्वात् / नापि धर्मिग्राहकप्रमाणबाधित:पक्षस्तद्ग्राहिणा प्रमाणेन तस्य श्रेयोमार्गोपदेशित्वेनाप्रतिपत्तेः / परोपगमतः साधनाभिधानाद्वा न प्रकृतचोद्यावतारः सर्वस्य तथा तद्वचनाप्रतिक्षेपात्। विज्ञानसमवायाच्चेच्चेतनोऽयमुपेयते। तत्संसर्गात्कथं न ज्ञः कपिलोऽपि प्रसिद्ध्यति // 6 // यथेश्वरो ज्ञानसमवायाच्चेतनस्तथा ज्ञानसंसर्गात्कपिलोऽपि ज्ञोऽस्तु। तथापि तस्याज्ञत्वे कथमीश्वरश्चेतनो यतोऽसिद्धो हेतुः स्यात् / . इस हेतु से (अपने से भिन्न पड़े हुए प्राकृतिक ज्ञान के सम्बन्ध से ज्ञानी होकर भी) ईश्वर मोक्षमार्ग का उपदेश देने में समर्थ नहीं है। क्योंकि ज्ञान से सर्वथा भिन्न हो जाने के कारण ईश्वर भी अचेतन ही है॥६६॥ ___ आकाश के समान स्वयं अचेतन होने से ईश्वर श्रेयोमार्ग का उपदेशक नहीं है। ज्ञान से अर्थान्तर होने से स्वयं ईश्वर अचेतन है। जैसे आकाश स्वयं अचेतन होने से श्रेयोमार्ग का उपदेशक नहीं है। . इसमें यह हेतु आश्रय असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि किसी पुरुष विशेष को स्याद्वादियों ने ईश्वर स्वीकार किया है। यह पक्ष, धर्मिग्राहक प्रमाण से बाधित भी नहीं है। क्योंकि श्रेयोमार्ग का उपदेश देने वाले उस ईश्वर का अद्यापि निर्णय नहीं हुआ है। अर्थात् ईश्वर मोक्षमार्ग का उपदेशक है, इसकी सिद्धि अभी तक नहीं हुई नैयायिकों के द्वारा स्वीकृत साधन के अभिधान (कथन) से इस प्रकरण में कुत्सित दोषों का अवतार नहीं हो सकता है। क्योंकि सभी वादी वैसे ही उन प्रतिवादियों के वचन का खण्डन नहीं कर सकते। अत: दूसरों के मन्तव्य को लेकर ही सब लोग हेतु और पक्ष को बोल सकते हैं, इसमें कोई दोष नहीं है। नैयायिक यदि विज्ञान के समवाय (भिन्न होने पर भी गुण-गुणी के समवाय सम्बन्ध) से ईश्वर को चेतन स्वीकार करते हैं- तो सांख्य के मत में भी प्रकृति की बनी हुई उस बुद्धि के संसर्ग से कपिल के भी ज्ञाता स्वभाव की प्रसिद्धि क्यों नहीं हो जाएगी? // 67 // . जिस प्रकार (नैयायिकों के मत में) ज्ञान के समवाय से ईश्वर चेतन माना जाता है, उसी प्रकार ज्ञान के संसर्ग से (सांख्यों का) कपिल भी ज्ञाता हो जायेगा। यदि ज्ञान का संयोग होने पर भी कपिल को अज्ञानी मानोगे तो फिर ज्ञान के संयोग से ईश्वर चेतन (ज्ञानी) कैसे हो सकता है? जिससे कि हमारा हेतु असिद्ध हो जावे अर्थात् अतः ईश्वर के मोक्षमार्ग के उपदेशकत्व के अभाव को सिद्ध करने में दिया गया अचेतनत्व हेतु सिद्ध ही है।