________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 113 * सिद्धं परमतं तस्य सान्वयत्वे जिनत्वतः। प्रतिक्षणविनाशित्वे सर्वथार्थक्रियाक्षतिः // 8 // न सान्वयः सुगतो येन तीर्थकरत्वभावनोपात्तात्तीर्थकरत्वनामकर्मणोऽतिशयवतः पुण्यादागमलक्षणं तीर्थं प्रवर्तयतोऽर्हतो विवक्षारहितस्य नामांतरकरणात् स्याद्वादिमतं सिद्धयेत् / नापि प्रतिक्षणविनाशी सुगत: क्षणे शास्ता येनास्य क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाक्षतिरापाद्यते। किं तर्हि? सुगतसंतानः शास्तेति यो ब्रूयात्तस्यापि स संतानः किमवस्तु वस्तु वा स्यात्? उभयत्रार्थक्रियाक्षतिपरमतसिद्धि तदवस्थे। तथाहि . यदि बुद्ध को प्रतिक्षण विनाशशील निरन्वय मानोगे तो सर्वार्थक्रिया की क्षति (नाश) होगी। क्षणिक पदार्थ में अर्थक्रिया नहीं हो सकती। निरन्वय नाश होने वाला बुद्ध मोक्षमार्ग का उपदेश भी नहीं दे सकता। क्योंकि जो कालान्तर स्थायी होता है. वही उपदेश दे सकता है॥८८॥ ___ बौद्ध कहते हैं कि सुगत द्रव्य रूप से अनादि अनन्त काल तक रहने वाला अन्वयी नहीं है। क्योंकि ऐसा होता तो स्याद्वादियों का यह मन्तव्य सिद्ध हो जाता कि तीर्थंकर प्रकृति का आस्रव कराने के कारण षोड़शकारण भावनाओं के बल से उपार्जित तीर्थंकर नामकर्म के माहात्म्य से उत्पन्न पुण्य के सामर्थ्य से बोलने की इच्छा के बिना भी मोक्षमार्ग के प्रतिपादक आगम रूपी तीर्थ की प्रवृत्ति कराते हुए अर्हन्त देव का ही दूसरा नाम बुद्ध कर दिया गया है तथा हम क्षण-क्षण में नष्ट होने वाले निरन्वयी सुगत को एक ही क्षण में मोक्षमार्ग का उपदेष्टा भी नहीं मानते हैं- जिससे क्रमश: या युगपत् अर्थक्रिया की क्षति का दोष आ सके। शंका- बौद्ध सुगत को कैसा मानते हैं? उत्तर- बौद्ध दर्शन में "अनादि काल तक धाराप्रवाह रूप रहने वाली सुगत की संतान मोक्षमार्ग की शास्ता है" ऐसा स्वीकार किया है। जैनाचार्य कहते हैं कि- इस प्रकार जो (बौद्ध) कहता है, उसके भी वह सुगत की संतान वस्तु है वा अवस्तु है? दोनों पक्षों में ही अर्थक्रिया का अभाव है और जैनमत की सिद्धि पूर्व प्रकार से अवस्थित है अर्थात् सुगत की संतान को अवस्तु मानते हैं तो युगपत् वा क्रम से अर्थक्रिया नहीं हो सकती और यदि वस्तुभूत मानते हैं तो स्याद्वाद मत की सिद्धि हो जाती है। इसी कथन को पुनः स्पष्ट करते हैं