________________ - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 22 खंडयनित्यैकांतत्वविरोधात् / तदुद्धिं प्रतिघ्नन्निति चेत्, तत्प्रतिघाते शब्दस्योपलभ्यता प्रतिहन्यते वा न वा? प्रतिहन्यते चेत् सा शब्दादभिन्ना प्रतिहन्यते न पुनः शब्द इति प्रलापमात्रं / ततोऽसौ भिन्नैवेति चेत्, सर्वदानुपलभ्यतास्वभावः शब्दः स्यात् / तत्संबंधादुपलभ्यः स इति चेत् कस्तया तस्य संबंधः। धर्मधर्मि भाव इति चेत्, नात्यंतं भिन्नयोस्तयोस्तद्भावविरोधात् / भेदाभेदोपगमादविरुद्धस्तद्भाव इति चेत्, तर्हि येनांशेनाभिन्नोपलभ्यता ततः प्रतिहन्यते तेन शब्दोऽपीति नैकांतनित्योऽसौ। द्वितीयविकल्पे सत्यप्यावारके शब्दस्योपलब्धिप्रसंगस्तदुपलभ्यतायाः प्रतिघाताभावात् / तथा च न तदुद्धिप्रतिघाती आविर्भाव, शब्द के कूटस्थ अपरिणामित्व का विरोधी नहीं होने से मीमांसक दर्शन की सिद्धि होती है। आचार्य कहते हैं कि - वायु क्या करती हुई शब्द का आवरण करती है? (स्वरूप का घात करती हुई कि शब्द का प्रतिबन्ध करती हुई?) यदि आवारक वायु शब्द के स्वरूप का घात कर देती है तो शब्द के एकान्त से कूटस्थ नित्यपने का विरोध आता है अर्थात् शब्द का स्वरूप सर्वथा नष्ट हो जाने पर शब्द कूटस्थ नित्य नहीं रह सकता। वायु, शब्द के स्वरूप की घातक तो है नहीं। यदि शब्द का आवरण करने वाली वायु शब्द के ज्ञान की प्रतिबन्धक है तो शब्दज्ञान के प्रतिघात के समय शब्द की उपलभ्यता का घात होता है कि नहीं? यदि शब्द की उपलभ्यता रूप स्वभाव का नाश होता है तो उपलभ्यता से अभिन्न होने से 'वायु के द्वारा शब्द की जानने की योग्यता (उपलभ्यता) का घात होता है, शब्द का नहीं' ऐसा कहना प्रलाप मात्र है। यदि कहो कि शब्द से शब्द की योग्यता भिन्न ही है तो शब्द का स्वभाव सर्वदा ज्ञान से नहीं जानने योग्य ही रहेगा। यदि कहो कि भिन्न उपलभ्यता का शब्द के साथ संबंध होने से शब्द उपलभ्य (ज्ञान का विषय) हो जायेगा तो वह सम्बन्ध कौन सा है? धर्म-धर्मी भाव सम्बन्ध तो हो नहीं सकता क्योंकि अत्यन्त भिन्न शब्दरूप धर्मी और उपलभ्यता रूप धर्म में तद्भाव (वह उसका भाव है ऐसे कथन) का विरोध आता है। यदि कहो कि भेद और अभेद इन दोनों पक्षों को स्वीकार करने पर अविरुद्ध होने से तद्भाव उनमें सिद्ध होगा तो अभेद पक्ष में जिस अंश से अभिन्न उपलभ्यता का उस वायु के द्वारा नाश होगा, उस स्वभावपने से तो शब्द का भी नाश हो ही जायेगा, ऐसी दशा में शब्द एकान्त रूप से नित्य कैसे माना जा सकता है? अर्थात् शब्द एकान्त रूप से नित्य नहीं है। तथा शब्द से सर्वथा भिन्न और उपलभ्यता के आवारक वायु के द्वारा उसका नाश होता है, यह भी सिद्ध नहीं होता। . - यदि द्वितीय विकल्प (वायु के द्वारा शब्द की उपलभ्यता का नाश नहीं होता है इस विकल्प) को स्वीकार करते हो तो “शब्द की उपलभ्यता के प्रतिघात का अभाव होने से आवरण करने वाली