________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 29 द्वस्तुत्वासंभवादिति नैकांतनित्यः शब्दो, नापि सर्वथा द्रव्यं पर्यायात्मतास्वीकरणात् / स हि पुद्गलस्य पर्यायः क्रमशस्तत्रोद्भवत्वात् छायातपादिवत् कथंचिद्रव्यं शब्दः क्रियावत्त्वाद्बाणादिवत् / धात्वर्थलक्षणया क्रियया क्रियावता गुणादिनानैकांत इति चेत् / न / परिस्पंदरूपया क्रियया क्रियावत्त्वस्य हेतुत्ववचनात् / क्रियावत्त्वमसिद्धमिति चेत् / न / देशांतरप्राप्त्या तस्य तत्सिद्धेरन्यथा बाणादेरपि नि:क्रियत्वप्रसंगान्मतांतरप्रवेशाच्च / ततो द्रव्यपर्यायात्मकत्वाच्छब्दस्यैकांतेन द्रव्यत्वासिद्धिः। अमूर्त्तत्वं चासिद्धं तस्य मूर्तिमद्रव्यपर्यायत्वात् / मूर्तिमद्रव्यपर्यायोसौ रूप से स्थित रहना पड़ता है अन्यथा नित्य आदि एकान्त में अर्थक्रिया नहीं होती। अतः शब्द सर्वथा नित्य नहीं है। .. पर्यायात्मक स्वीकार करने से शब्द एकान्त से द्रव्य भी नहीं है क्योंकि छाया, धूप आदि के समान क्रमशः पुद्गल में ही उपादेय रूप से उत्पन्न होने से शब्द पुद्गल की पर्याय है। अर्थात् जैसे धूप छाया पुद्गल की पर्याय हैं, पुद्गल से उत्पन्न होने से, वैसे पुद्गल से उत्पन्न होने से शब्द भी पुद्गल की पर्याय है। _बाणादि के समान क्रियावान होने से शब्द कथंचित् द्रव्य भी है अर्थात् उच्चारण करने के बाद शब्द बाण के समान देशान्तर में जाता है। .: शंका - धातु (पठ् गच्छ आदि) लक्षण क्रिया के द्वारा क्रियावान गुणादि (गुणकर्मादि) के साथ हेतु व्यभिचारी होगा। अर्थात् धातु अर्थ-लक्षण क्रिया के द्वारा काला पीला आदि गुण वा, भ्रमण आदि कर्म, क्रियावान होने से द्रव्य हो जायेंगे। उत्तर - ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि (यहाँ पर धातु अर्थक्रिया से प्रयोजन नहीं है अपितु) देश से देशान्तर करने वाली हलन-चलनादि परिस्पन्द रूप क्रिया के द्वारा क्रियावत्व के हेतुत्व वचन हैं (अर्थात् परिस्पन्द रूप क्रिया हेतु से शब्द द्रव्य हैं, ऐसा कहा गया है,. धात्वर्थ क्रिया की अपेक्षा नहीं)। शब्द में क्रियावत्व (क्रियापना) असिद्ध है, ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि शब्दों के देशान्तर प्राप्ति (उच्चरित शब्दों का दूर तक सुनाई देने) से क्रियावत्व सिद्ध ही है। यदि वक्ता के मुख से उच्चरित शब्दों का कानों तक पहुँचने आदि से भी शब्दों में क्रियापना नहीं मानोगे या क्रिया के बिना ही शब्द देशान्तर में पहुँच जायेंगे तो बाण आदि के भी निष्क्रियत्व का प्रसंग आयेगा अर्थात् बाणादि भी निष्क्रिय होकर देशान्तर में पहुँच जायेंगे। वा मतान्तर (बौद्धमत) का प्रवेश होगा अर्थात् बौद्ध चिरस्थायी क्रिया के साथ अनुस्यूत रहने वाले द्रव्य को न मानकर क्षण-क्षण में नष्ट होने वाली पर्याय को ही स्वीकार करते हैं। अतः द्रव्य-पर्यायात्मक शब्द के एकान्त से द्रव्यत्व की असिद्धि है। अर्थात् शब्द कथंचित् पुद्गल द्रव्य है, और कथंचित् पर्याय है। मूर्त (पुद्गल) द्रव्य की पर्याय होने से शब्दों के अमूर्तिपना भी असिद्ध है, क्योंकि यह शब्द धूप आदि के समान सामान्य विशेषत्व होकर बाह्य इन्द्रियों का विषय होने से मूर्त द्रव्य की पर्याय है। अर्थात् जो सामान्य (सत्ता