________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 24 स्यादप्रतिपत्तिरिति व्यर्थाभिव्यक्तिः। श्रोत्रसंस्कारोऽभिव्यक्तिरित्यन्ये; तेषामपि श्रोत्रस्यावारकापनयनं संस्कारः; शब्दग्रहणयोग्यतोत्पत्तिा। तदा तद्भावे तस्योपलभ्यतोत्पत्त्यनुत्पत्त्योः स एव दोषः। तदुभयसंस्कारोऽभिव्यक्तिरित्ययं पक्षोऽनेनैव प्रतिक्षेप्तव्यः प्रवाहनित्यतोपगमादभिधानस्याभिव्यक्तौ नोक्तो दोष इति चेत् न, पुरुषव्यापारात् प्राक तत्प्रवाहसद्भावे प्रमाणाभावात् / प्रत्यभिज्ञानं प्रमाणमिति चेत्, तत्सादृश्यनिबंधनमेकत्वनिबंधनं वा? न तावदाद्यः पक्षः सादृश्यनिबंधनात्प्रत्यभिज्ञानादेकशब्दप्रवाहासिद्धेः। द्वितीयपक्षे तु कुतस्तदेकत्वनिबंधनत्वसिद्धिः। 'कर्णेन्द्रिय का संस्कार हो जाना ही नित्य व्यापक शब्द की अभिव्यक्ति है' ऐसा कोई (मीमांसक) कहते हैं। उनके भी कर्णों को सुनाई देने में आवरण करने वाले आवारकों का दूर करना श्रोत्र इन्द्रिय का संस्कार है? या शब्द के ग्रहण करने की योग्यता का उत्पन्न हो जाना कर्णेन्द्रिय का संस्कार है? इन दोनों पक्षों में भी जब कर्णेन्द्रिय का संस्कार हो जाता है, तब शब्द में उपलभ्यता की उत्पत्ति एवं अनुत्पत्ति मानने से दोनों में ही पूर्वोक्त दोष आते हैं - अर्थात् या तो शब्द की उपलब्धि के प्रादुर्भाव में उपलब्धि से शब्द से अपृथक् होने से शब्द की उत्पत्ति माननी पड़ेगी या शब्द की उत्पत्ति न होने से शब्द कभी सुनाई भी नहीं पड़ेगा अथवा कर्णेन्द्रिय भी आकाश रूप होने से (मीमांसकों की मान्यतानुसार) उसका कोई आवारक भी नहीं होगा। (अतः श्रोत्र के संस्कार को शब्द की अभिव्यक्ति मानना भी ठीक नहीं।) ___“कर्ण और वर्ण (क ख ग घ आदि) इन दोनों का संस्कार शब्द की अभिव्यक्ति है" ऐसा कहने वालों (प्रभाकर) का पक्ष भी पूर्वोक्त कथन से ही निराकृत हुआ समझ लेना चाहिए। प्रश्न - कूटस्थ नित्य न मानकर प्रवाह रूप से शब्द की नित्यता स्वीकार कर लेने पर शब्द की अभिव्यक्ति में पूर्वोक्त दोष नहीं आते हैं। उत्तर - ऐसा कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि पुरुष के कण्ठ तालु आदि व्यापार के पूर्व भी प्रवाह रूप (बीजांकुर रूप) शब्द के सद्भाव में प्रमाण का अभाव है अर्थात् पुरुष के बोलने के प्रयत्न के पूर्व 'शब्द प्रवाह रूप में विद्यमान है' इसको बताने वाला कोई प्रमाण है ही नहीं। - यदि कहो कि 'पुरुष व्यापार के पूर्व शब्द प्रवाहरूप से विद्यमान है' इसको सिद्ध करने वाला प्रत्यभिज्ञान प्रमाण है तो शब्द के प्रवाह रूप से नित्यता सिद्ध करने में कारण सादृश्य प्रत्यभिज्ञान है कि एकत्व प्रत्यभिज्ञान है? सादृश्य प्रत्यभिज्ञान से तो पुरुष के व्यापार के पूर्व में शब्द प्रवाह रूप से विद्यमान है इसकी सिद्धि नहीं हो सकती - क्योंकि सदृशता का अवलम्बन करने वाले प्रत्यभिज्ञान से तो 'यह वही शब्द है' ऐसी एकता को पुष्ट करने वाली शब्द की प्रवाह-नित्यता की सिद्धि नहीं होती। अर्थात् सदृशता तो भिन्न-भिन्न पदार्थों में पाई जाती है। एकत्व प्रत्यभिज्ञान से शब्द की प्रवाहनित्यता को स्वीकार करने पर ‘एकत्व प्रत्यभिज्ञान पूर्व और पश्चात् शब्द के एकपने के कारण से उत्पन्न हुआ है', यह निर्णय कैसे किया जायेगा। अर्थात् यह वही शब्द है ऐसा कहना सत्य है, ऐसा कैसे कहा जायेगा?