Book Title: Suryapraksh Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 15
________________ [14] यह नहीं है कि हम सुवर्णसे द्वेष करते हैं। इसी प्रकार शाल की परीक्षा करना भी प्रेम, भक्ति और आदरका सूचक है। ____ कोई कोई भाई कहने लगते हैं कि 'हम शास्त्रकारसे अधिक बुद्धिमान हों तो परीक्षा कर सकते हैं। परन्तु यह विचार भी ठीक नहीं है। पहिली बात तो यह है कि अमुक प्रन्थ बनाने वाला आजकलके सब मनुष्योंसे अधिक बुद्धिमान था यह समझना मिथ्या है। दूसरी बात यह है कि अल्पबुद्धि होकरके भी हम किसी बातको परीक्षा कर सकते हैं। सुन्दर गानकी परीक्षाके लिये सुन्दर गायक होना आवश्यक नहीं है। यदि हम स्वयं परीक्षा न कर सकते हों तो दूसरा आदमी जो परीक्षा करे उसकी जाँच तो अवश्य कर सकते हैं । अगर हम इतनी भी परीक्षा नहीं कर सकते तो अपने पक्षको सत्य और दूसरेके पक्षको असत्य कहनेका हमें कोई हक नहीं रह जाता है। हम विवे. कियों में अपनो गणना कदापि नहीं कर सकते। जैनसमाजमें छोटे छोटे बालकोंको भो शास्त्रका लक्षण पढ़ाया जाता है । लक्षणका उपयोग परीक्षामें ही है। यदि शास्त्रको परीक्षा करना पाप है तो उसका लक्षण बनाना और पढ़ाना भी पाप है; क्योंकि परीक्षाके सिवाय लक्षणका दूसरा उपयोग ही क्या है ? जबकि हमारे आचार्योंने शास्त्रका लक्षण बताया है और स्वामी समन्तभद्रसे लेकर पं० टोडरमल्ल तक प्रायः सभी सुलेखकाने शास्त्रकी परीक्षा की है तब यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जैनधर्म में परीक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण और आवश्यक स्थान रखती है। ___ जब भगवान महावीरके धचन अपने मूलरूपमें उपलब्ध न हों, अंग-पूर्व नष्ट हो गये हों, जैनधर्म ने हज़ारों वर्षों तक अनेक ऊंचे नीचे दिन देखे हों, परिस्थितियों के प्रभावसे

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