________________
श
ला
हुए आकाश के देखने से लोगों का जो भय हुआ था, उसे सन्मति ने दूर किया था, क्षेमंकर ने प्रजा में क्षेमकल्याण का प्रचार किया था, क्षेमंधर ने क्षेमकर के द्वारा बताये कल्याण मार्ग पर चलने की विधि बतलाई । स्वयं उस मार्ग पर चलकर मार्गदर्शन किया था, सीमंकर ने आर्य पुरुषों की सीमा नियत की थी, | सीमन्धर ने कल्पवृक्षों की सीमा निश्चित की थी, विमलवाहन ने हाथी आदि पर सवारी करने का उपदेश पु दिया था, सबसे पहले अग्रसर रहनेवाले चक्षुष्मान ने पुत्र के मुख देखने की परम्परा चलायी थी, यशस्वान्
का
रु
ष
का सब कोई यशोगान करते थे, अभिचन्द्र ने बालकों की चन्द्रमा के साथ क्रीड़ा कराने का उपदेश दिया था, चन्द्राभ के समय माता-पिता अपने पुत्रों के साथ कुछ दिनों तक जीवित रहने लगे थे, मरुदेव के समय माता-पिता अपने पुत्रों के साथ बहुत दिनों तक जीवित रहने लगे थे, प्रसेनजित ने गर्भ के ऊपर रहनेवाले जरायुरूपी मल के हटाने का उपदेश दिया था और नाभिराज ने नाभि-नाल काटने का उपदेश दिया था । नाभिराज के घर तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हुआ था ।
वि
श्व
व्य
व
स्था
ए
ये सभी कुलकर महाबुद्धिमान, सर्वांग सुन्दर थे और अत्यन्त बलिष्ठ थे । इन्होंने प्रकृति की सभी | शोभास्पद वस्तुओं को अपनी शोभा से फीका कर दिया था ।
नाभिराज से पूर्व कुलकरों ने जो व्यवस्था लोक को बताई थी । उस सब व्यवस्था को नाभिराज ने संभाल लिया था । उनकी आयु एक करोड़ पूर्व की थी और शरीर की ऊँचाई पाँच सौ पच्चीस धनुष थी। उन्हीं के समय आकाश में कुछ सफेदी लिए हुए काले रंग के सघन मेघ प्रगट हुए थे। वे मेघ इन्द्रधनुष से सहित थे । उस समय काल के प्रभाव से पुद्गल परमाणुओं में मेघ बनाने की सामर्थ्य उत्पन्न हो गई थी वे मेघ विद्युत् से युक्त थे, गंभीर गर्जना करने लगे थे और पानी बरसाने लगे थे ।
कल्पवृक्षों का अभाव होने से उनके स्थानापन्न धान्य हो गये थे, किन्तु उनका उपयोग करना न आने | से प्रजा दुःखी थी । यद्यपि उस समय न अतिवृष्टि होती थी और न अनावृष्टि; अतः सभी प्रकार के अन्न भरपूर मात्रा में उत्पन्न होने लगे थे; परंतु उसके उपयोग करने के बारे में सही जानकारी नहीं थी । आहार संज्ञा
क
र
सर्ग