________________
२२ ]
* श्री पाश्वनाथ चरित * मणिमादिगुणाटेश्वर्यादयविक्रियदेहभाफ । छायातिगातिदिव्याङ्गकान्त्या दीप्त्या व्यभासराम् ।६३॥ द्वयष्टवर्षसहस्र' गते पाहार सुधामयम् । मक्षितृप्तिदं दिव्यं भुनक्ति मनसा सुरः ।।६४।।
यष्टपक्षगते हच्छ वासंमनाम् लभतेऽमरः । सुगन्धीकृत्य दिग्भाग जराक्लेशरुजातिगः ।।६।। चतुर्थावनिपर्यन्तावधिज्ञानाखिलार्थवित् । तत्समानमहा-विकिद्धिभूषितकायभाक ।।६६।। क्वचिन्नृत्यं क्वचिद्गीतं क्वचित्पूजां क्वचिद् वृषम् । भजन्मग्नोऽतिशर्मान्धौ' गतं कालं न वेति स: ।६७ सोऽप कुकुंटसोऽतिपापभारेण पापधीः । धूमप्रभाभिधश्वभ्र सागरे मग्न एव हि ॥६८।। छेदन भेदनं शूलारोहणं च विदारणम् । ताडनं मारणं घोरं बन्धनञ्च कदर्थनम् ॥६९।। शारीरं मानसं तीब्रदुःखं वाचामगोचरम् । क्षेत्रोत्पन्नं महारोगजातं च विक्रियोद्भवम् ।।७०।। सतततलनिक्षेपं वैतरण्या प्रमज्जनम् । इत्यादि विविधा पीडां नारकेभ्यः क्षरणं क्षणम् ।।७।। हिसाजितपापौधफलारस लभते चिरम् ।प्रशरण्यो बलात्तत्र नारको दीनमानसः ।।७२।। प्राधयन् शरणं तत्र गच्छन्मूच्छा मुहुर्मुहुः । कदय॑मानएवास्ते नारको नारकैः सदा ।।३।। युक्त वैक्रियिक शरीर से सहित था तथा छाया से रहित दिव्य शरीर की कान्ति और दोप्ति से अत्यन्त शोभायमान था ॥६२-६३॥ वह देव सोलह हजार वर्ष बीत जाने पर समस्त इन्द्रियों को तृप्ति देने वाला अमृतमय मानसिक पाहार ग्रहण करता था ॥६४॥ वृद्धायस्था सम्बन्धी क्लेश और रोगों से रहित वह देव, सोलह पक्ष व्यतीत होने पर विशानों को सुगन्धित कर थोड़ा श्वासोच्छ्वास ग्रहण करता या ॥६५॥ वह अवधिज्ञान के द्वारा चतुर्थ पृथिवी तक के समस्त पदार्थों को जानता था और उतनी ही दूर तक को विक्रिया ऋद्धि से विभूषित शरीर से युक्त भा ॥६६॥ सुखरूपी विशाल सागर में मग्न रहने वाला यह देय, कहीं नृत्य, कहीं गान, कहों पूजा, और कहीं धर्म-चर्चा को प्राप्त होता हुआ व्यतीत हुए काल को नहीं जान सका ।।६७।।
तदनन्तर पापरूप बुद्धि से युक्त यह कुकुट सर्प तीव्र पाप के भार से धूमप्रभा नामक नरक रूपी सागर में जाकर निमग्न हो गया अर्थात् मरकर पांचवें नरक गया ॥६७॥ वहां वह हिंसा प्रादि कार्यों से उपाजित पाप समूह के फलस्वरूप छेदा जाना, भेदा जाना, शूली पर चढ़ाया जाना, विदारण किया जाना, ताडन, मारण, भयंकर बन्धन, तथा पीडन प्रादि शारीरिक, वचनों के अगोचर तीक मानसिक, क्षेत्र से उत्पन्न, महा रोगों से उत्पन्न, विक्रिया से उत्पन्न, संतप्त लेल में डाला जाना, और वैतरणी में डुबाया जाना, इत्यादि नाना पीड़ानों को नारकियों से चिरकाल तक प्रत्येक क्षण प्राप्त करता रहा । यह सब दुःख उसे बलात् भोगने पड़ते थे । वहां उसका कोई शरण्य-रक्षा करने वाला नहीं था । अत्यन्त दोन हृदय १. घास हम दोष मान५ २. पारश म रापमान १९ ३. अत्यधिकमुष्व सागर ४. पीएम ५. नोमान ।
...-
...
-
-
-
-