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• एकादशम सर्ग
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जिनेन्द्रस्मरणाश्च सामायिकस्तवादिभिः । सर्वमाङ्गल्यसिद्धयर्थ कृत्स्नाभ्युदयकारणम् ॥१६॥ ततः मुस्नाननेपध्यायः कृत्वा स्वाङ्गमण्डनम् । दिब्याम्बरधरा दक्षा कियत्स्वजनवेष्टिता ॥२०॥ सिंहासनाधिरूढस्य भर्तुरन्त जगाम सा ।सभायां सर्वस्वप्नानां फलार्थनिश्चयाप्तये ।।२।। भूपोऽप्युचितसम्मान ष्ट्वा संभाष्य संददौ । सस्या पर्वासनात्मीय प्रीत्या प्रीतिकर द्रुतम् ।।२२।। स्मेरमास्यं विधायोच्चः सुखासीना व्यजिज्ञपद । तस्मै नपासनस्थाय भत्रे दिव्यागरा सती ।।२।। देवाद्य यामिनाया। पश्चिमेरे सुखनिद्रिता । स्वपुण्येनाहमद्राक्षमिमान्स्वप्नांश्च षोडश ॥२४॥ गजेन्द्राधनलान्तान्सुमहान्युदयकारणान् ।विधाय मयां नाय तेषां फलं ममादिश 11२५।। प्रथाबोचन्नृपो दिव्यावधिजानबलान्मुदा । शृणु देवि प्रवक्ष्येऽहं स्वप्नानां फलमूजितम् ॥२६॥ गजेन्द्रदर्शनात ऽद्य महान्पुत्रो जगद्धितः । भविता विबुधाराध्यो विश्वराजशिरोमणिः ।।२।। समस्तभुवने ज्येष्ठो महावृषभदर्शनात् । जगत्यस्मिन्महाधर्मरथधौर्यप्रवर्तकः ॥२८॥ सिंहेनानन्तवीर्योऽसौ स्वकर्मगजघातकः ।दाम्ना सद्धर्मसज्जामतीर्थकर्ता सुखाकरः ॥२६॥ देवी ने शीघ्र ही शय्या से उठकर धर्म्यध्यान किया ॥१८॥ समस्त मङ्गलों की सिद्धि के लिये उसने जिनेन्द्र भगवान् के स्मरण आदि तथा सामायिक स्तधन प्रादि के द्वारा सर्व अभ्युक्य का कारण भूत धर्म्यध्यान किया था ॥१६।। तत्पश्चात् उत्तम स्नान और वेषभूषा आदि के द्वारा अपने शरीर अलंकृत कर जिसने सुन्दर वस्त्र धारण किये हैं ऐसी वह रानी कितने ही प्रास्मीयजनों से परिवृत्त हो समस्त स्वप्नों के फल का निश्चय करने के लिये सभा में सिंहासन पर पाल्तु पति के समीप गयी ।।२०-२१॥ राजा ने भी उसे देख कर योग्य सन्मान के साथ उससे संभाषण किया तपा शीघ्र ही प्रीतिपूर्वक प्रीति को उत्पन्न करने वाला अपना अर्धासन दिया ॥२२॥ उत्तम सुख से बैठी हुई पतिव्रता रानी ने मुखको मन्दहास्य से युक्त कर राजसिंहासन पर स्थित अपने पति के लिये मनोहर वाणी द्वारा मिवेदन किया ॥२३॥ हे देव ! प्राज सुख से सोयी हुई मैंने रात्रि के पिछले प्रहर में अपने पुण्योदय से मजराज को प्रादि लेकर अग्नि पर्यन्त महान अभ्युदय के कारण ये सोलह स्वप्न देखे हैं । हे नाथ ! मुझ पर क्या कर मेरे लिये उनका फल कहिये ॥२४-२५॥
तदनन्तर दिग्य प्रयधिज्ञान के बल से जानकर राजा ने हर्षपूर्वक कहा कि हे देवि ! सुनो, मैं स्वप्नों का उत्तम फल कहता हूँ ॥२८॥ प्राज गजराज के देखने से तेरे जगत् हितकारी, देवों के द्वारा प्राराधनीय और समस्त राजानों का शिरोमरिण महान पुत्र होगा ॥२७॥ महावृषभ के देखने से वह समस्त लोक में श्रेष्ठ होगा और इस जगत में धर्मरूपी महान रथ को प्रवत्ताने वाला होगा ॥२८॥ सिंह के देखने से वह अपने कमरूपी हाथियों ६. सत्रियहरे २, अन्ते ।