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4 विशतितम सगं ●
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मार्यम्लेच्छ्रभवा भोगकुभोगभूमिजा नराः | अष्टमेश मता व पर्याप्तापर्याप्तभेदतः ॥२६ ।। संमूच्छिमा मनुष्या अलविपर्याप्तसंज्ञिकाः । इति 'विश्वे भवन्त्यत्र नवभेदा नृयोनिजाः ॥ ३०॥ | नवधा श्रीजिनैः प्रोक्ता ज्ञानरागमे ।। ३१ ।। पर्याप्तादित्रिभेदेन गुणिता विकलाङ्गनः मष्टान तिरेते जीवसमासा विचक्षरी: । विज्ञेया यत्नतस्तेषां दया कार्या मुमुक्षुभिः ॥ ३२ ॥ बरोदकाग्निवाताख्या नित्येतर निकोलकाः । सप्तसप्त पृथग्लक्षाश्च वनस्पतयो दश द्वित्रिन्द्रिया द्वौ द्वौ लक्षौ देवाश्च नारकाः । पशवो हि चतुलंक्षाश्चतुर्दश नृजातयः चतुरशोतिलक्षा हमा जीवजातयोऽखिलाः । रक्षणीयाः प्रयत्नेन ज्ञात्वा दक्षेः स्वमुक्तये ।। ३५ ।। कोटीकोट का नवनवतिलक्षाश्च कोटय: । सत्पञ्चाशत्सहस्रा इत्यखिलाङ्गिकुलाम्यपि ॥ ३६ ॥
॥३३॥
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३४ ॥
के अठारह सब मिलाकर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च चौतीस प्रकार के होते हैं ।। २४- २८ ।। गर्भज मनुष्यों के प्रार्थखण्डज, म्लेच्छखण्डज, भोगभूमिज और कुभोगभूमिज ये चार भेद हैं और चारों भेद पर्याप्त तथा नित्यपर्याप्तक की अपेक्षा दो दो प्रकार के हैं अतः श्राठ प्रकार के हुए। इनमें लब्ध्यपर्याप्तक संमूर्च्छन मनुष्यों का एक मेव मिलाने से सब मनुष्य नौ प्रकार के होते हैं ।।२६-३०।। विकलत्रय जीव पर्याप्तक, मिस्वपर्याप्तक और लब्ध्यपर्याप्लक की अपेक्षा तीन प्रकार के हैं अतः इनका गुणा करने पर ज्ञानरूपी नेत्र के धारक श्री जिनेन्द्र भगवान् ने परमागम में विकलत्रय नौ प्रकार के कहे हैं ।। ३१।। इस प्रकार बुद्धिमान् जनों को में अठानवे जीव समास यत्नपूर्वक जनना चाहिये और मोक्षाभिलाषा जीवों को इनकी दया करना चाहिये ||३२||
पृथिवी जल श्रग्नि वायु नित्यनिगोव और इतरनिगोव इन छह को सात सात लाख, वनस्पति को वश लाख, द्वीन्द्रिय श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय की वो दो लाख, देव नारको और पशुओं की चार चार लाख तथा मनुष्यों की चौवह लाख ये सब मिला कर जीवों की चौरासी लाख जातियां हैं । चतुर मनुष्यों को अपनी मुक्ति के लिये इन्हें जान कर इनकी प्रयत्नपूर्वक रक्षा करना चाहिये ।।३३-३५ ।।
समस्त जीवों के कुलकोटियों की संख्या एक कोड़ा कोड़ी निन्यानवे लाख और पचास हजार करोड़ है । भावार्थ - जिन पुद्गल परमाणुओं से जीवों के शरीर की रचना होती है उन्हें कुलकोटी कहते हैं और शरीर रचना से जीवों को जाति में जो विभिन्नता प्राती है उसे योनि कहते हैं। ऊपर जीवों की धौरासी लाख योनियों का वर्णन किया गया है यहां
१. सर्वे २. मनुष्याः ।