Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 285
________________ २७२ ] • श्री पारवनाथ चरित - शार्दूलविक्रीरितम् पाश्वः सर्वसुखाकरोऽसुखहरो पावं श्रिता धमिरण: . पाश्र्चेरणाशु समाप्यतेऽमरपदं पापर्वाय मूर्मा नमः । पापन्निास्ति हितकरी भवभृतो पार्यस्य मुक्तिप्रिया पार्श्व वित्तमहं दधेऽखिलचिदे मां पाश्वं पागवं नय ।। १३०।। इति प्रामारक पीसकसकी तबियत भोपासना यार तस्वोपदेशवर्णनो नाम विंशतितमः सर्गः ।।२।। पार्श्वनाथ भगवान समस्त सुखों की खान तथा समस्त दुःख हर्ता थे, धर्मात्मा जीव पाश्वनाथ को प्राप्त हुए थे, पार्श्वनाथ के द्वारा शीघ्र ही अविनाशी पद प्राप्त किया गया था, पार्श्वनाथ के लिये शिर से नमस्कार करता है, पार्श्वनाथ से बढ़कर दूसरा प्राणियों का हित करने वाला नहीं है, पाश्वनाथ की मुक्ति प्रिया थी, मैं पूर्णज्ञान की प्राप्ति के लिये पावनाष में अपना चित्त धारण करता हूँ, हे पार्श्वनाथ ! मुझे अपने समीप ले बलो ॥१३०॥ इस प्रकार श्रीभट्टारक सकलकीति द्वारा विरचित श्रीपाश्चमाषचरित में तस्योप. पेश का वर्णन करने वाला बीसवा सर्ग समाप्त हुमा ॥२०॥ १. परप .।

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