Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 305
________________ २६२ ] + श्री पाश्र्वनाष चरित. धर्मचक्री प्रशान्तात्मा निलंपा निकलोऽमरः । सिद्धो बुद्धः प्रसिद्धात्मा श्रीपतिः पुरुषोत्तमः ।।५५।। दिव्यभाषापतिदिव्योऽप्यच्युतः परमेश्वरः । महातपा महातेजा महाध्यानी निरजन: ॥५६।। तीर्थकर्ता विचारज्ञो विवेकी शीलभूषण: । अनन्तमहिमा दक्षो निभू षो विगतायुधः ॥५७।। दिशा ही आपके वस्त्र हैं अर्थात् प्राप निविकार नग्न मुद्रा के धारक हैं प्रतः दिगम्बर है ३६. समस्त जगत के ज्ञायक होने से जगद्व्यापी हैं ३७. भव्य मोवों के हितकारी होने से भव्यबष है ३८. जगत् के गुरु हैं अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं अतः जगदगुरु हैं ३९. काम-मनोरथों को पूर्ण करने वाले हैं अतः फामद कहलाते हैं ४०. काम की बाधा को नष्ट करने वाले हैं अतः कामहन्ता कहे आते हैं ४१. अत्यन्त मनोहर है इसलिये सुन्दर हैं ४२. प्रानंद को देने वाले होने से प्रानंदवायक है ४३. जिनों-प्ररहतों में श्रेष्ठ हैं प्रतः जिनेंद्र है ४४. जिनों के स्वामी होने से जिनराट् है ४५. ज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु है ४६. परमपद में स्थित होने से परमेष्ठी है ४७. अनादिकाल से ज्ञानस्वभाव होने के कारण पुरातन है ४८. ज्ञान ही प्रापको ज्योति होने से ज्ञानज्योति कहलाते हैं ४६. प्रापकी प्रात्मा पूत-पवित्र है अतः पूतात्मा कहे जाते हैं ५०. सब से श्रेष्ठ है प्रतः महान हैं ५१. इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य नहीं है अतः सूक्ष्म है ५२. जगत् के स्वामी है इसलिये जगत्पति कहलाते है ५३. धर्मचक्र के प्रवर्तक है इसलिये धर्मचक्री कहे जाते हैं ५४. प्रापको प्रारमा अत्यन्त शान्त है इसलिये प्रशान्तात्मा हैं ५५. कर्मरूपी लेप से रहित होने के कारण निर्लेप है ५६. द्रव्य स्वभाव की अपेक्षा कल-शरीर से होने के कारण निजकल है ५७. मृत्यु से रहित होने से अमर है ५८. शुद्ध स्वभाव की उपलब्धि होने से सिद्ध है ५६. केवलज्ञान से युक्त होने के कारण बुद्ध है ६०, प्रसिद्ध आस्मा से सहित होने के कारण प्रसिखात्मा हैं ६१. अन्तरङ्ग प्रोर बहिरङ्ग लक्ष्मी के स्वामी होने से श्रीपति हैं ६२. पुरुषों में उत्तम-श्रेष्ठ होने से पुरुषोत्तम है ६३. दिव्यभाषा-निरक्षरी तथा सर्वभाषा स्वरूप परिणत होने वाली दिव्यध्वनि के स्वामी होने से विध्य भाषापति हैं ६४. स्वयं सुन्दर होने से दिव्य है ६५. स्वकीयस्वभाव से कभी क्युत नहीं होते इसलिये अच्युत हैं ६६. परम ऐश्वर्य-शत इन्द्रों को नम्रीभूत करने वाले ऐश्वर्य से सहित होने के कारण परमेश्वर हैं ६७. महान तपस्वी होने से महातपा हैं ६८. महान तेजस्वी से होने महातेजा हैं ६६. महान ध्यानी होने से महाध्यानी है ७०. फर्मरूपी प्रञ्जन से रहित होने के कारण निरञ्जन है ७१. तीर्थ-धर्माम्नाय के करने वाले

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